Saturday, June 19, 2021

हमारे देवता तो बड़े खिलाड़ी हैं पर हम नहीं, क्यों?

हमारे देवता तो बड़े खिलाड़ी हैं पर हम नहीं, क्यों?


सदा भवानी दाहिनी, सम्मुख रहें गणेश, पंच देव रक्षा करें ब्रह्मा, विष्णु महेश


इस प्रार्थना के साथ मैं अपने एक नास्तिक मित्र का प्रश्न उसी के शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ।


" रामायण और महाभारत के अनुसार राम और क्रिष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और प्रिथ्वी पर धर्म को बचाने और अधर्म का नाश करने के लिये मनुष्य रूप में पधारे।

तुम मुझसे सहमत हो या असहमत, मुझे भटका हुआ कह लो, नाराज़ हो लो या मुझे पागल क़रार दे दो पर मैं मानता हूँ कि सबसे बेवक़ूफ़ प्रश्न अभी पूछा जाना बाकी है और मेरा सवाल आख़री नहीं है अगर बेवक़ूफ़ी वाला समझो तो! तो पूछ ही लेता हूँ ताकि मेरा शंसय दूर हो सके!

हमारे कई भगवान हैं। लगता है सब एक दूसरे को अजमाने के लिये तत्पर रहते हैं ताकी अपने को बडा मनवा सकें, हालाँकि खुले तौर पर नहीं। खुले तौर पर तो एक दूसरे की पूजा कर्कों हैं विशेष रूप से विष्णु और शिव

उदाहरण के रूप में:-

भगवान शिव समाधि में हैं और प्रेम के देवता कामरूप उनकी समाधि भंग करने की कोशिश करते हैं पर सफल नहीं होते। शिव अपनी तीसरी आँख खोलते हैं और कामरूप को भस्म कर देते हैं। कामरूप की पत्नी दया की भीख माँगती है और शिव कहते हैं-


जब जदुबंस क्रिष्ण अवतारा, होइहि हरन महा महिभारा

क्रिष्ण तनय होइहि पति तोरा बचन अन्यथा होइ हमारा।


सीधे सीधे अगले युग की कोई तिथि तय कर देते ताकि बेचारी रति को अनिश्चित क़ालीन प्रतीक्षा करनी पडती कि कब क्रिष्ण का अवतार होगा, कब उनका लडका होगा आदि आदि। लेकिन वे तो क्रिष्ण की परीक्षा जैसे ले रहे हों!

और:-

रावण भगवान विष्णु से वरदान माँगता है-


कर बनती पद गह दससीसा, बोलेउ बचन सुन जगदीशा।

हम का के मरह मारे, बानर मनुज जातइ बारे।

बालकाण्ड


रावण ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसे नर और वानर मार सकें!

पर देखिये क्या हुआ? भगवान विष्णु नर रूप में अवतार लेते हैं और रावण का वध कर देते हैं! हुई पिछले दरवाज़े से एंट्री? अपना ही वचन तोड़ दिया!


देखिये:-


जन डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा, तुहहि लाग धरहउँ नर बेसा।

और:-


निज लोकह बरंच गे देवह इहइ सखाइ, बानर तनु धर धर मह हर पद सेव जाइ।


रावण को शिव का वरदान मिला और अजय हो गया। उसने देवताओं को डरा कर रखा, भगवान शिव के भक्त का अंत करने श्वयं भगवान विष्णु गये। कौन किसकी परीक्षा ले रहा होगा, कौन बडा है?"


मैं क्या कहता ? कहा:-


हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता


तब से सोच रहा हूँ, हमारे भगवान, देवता, गुरु, यदा कदा एक दूसरे की शक्ति अजमाने के लिये कोई कोई खेल खेलते रहे पर मन में कभी किसी बात का मलाल नहीं हुआ। उल्टे एक दूसरे की मदद करते हैं, एक दूसरे की पूजा करते हैं!


और एक हम हैं, उसके पैदा किये प्राणी। बात बात पर मुँह फुलाकर बैठ जाते हैं। एक दूसरे की जान तक ले लेते हैं!


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