Saturday, June 19, 2021

जब पैली और आख़री बेर झुंगारू भात बणै छे।

जब पैली और आख़री बेर झुंगारू भात बणै छे।


शीर्षक देखीक अंदाज लगि गे होलु कि क़लम कना जांणै च। 


जै तै पता नी बतै द्यूं कि झुंगारू बरसाती फ़सल हूंद। बारीक बीज हूंदन और साट्टी तरां कूटीक सफेद दाना निकलदन जै कुण झंगरियाल बोलदन। आज कत्ती तरह पकवान माँ इस्तेमाल हूंद पर गाँव मा पलेऊ मा डालद छे। झंगवारे की खीर भी बणांद छे। झंगवार कु भात भी बणद छे।


म्यार झंगवार कु अनुभव भात तक ही च। 


मी चार मा पढदु छे। अब जब तक मी नी बतौं कि मी पढदु भी छे आप तैं कनकै पता चलण कि मी पढदु भी छे। उमर रै ह्वेली दस साल। बनचूरी गौंखड्या स्कूल माँ हम द्वी भै पढदु छे। बडु भै पाँच मा और मी चार मा। वे टैम पर चार और पाँच विद्यार्थी रात कुण भी स्कूल मा रंद छे। पाँचवीं की बोर्ड की परीक्षा हूंदि छे मास्टर जी कुछ विद्यार्थीयों ख़ातिर और कुछ अपर नौकरी  ख़ातिर कोशिश माँ रंद छे कि रिज़ल्ट बढिया रौ। यन भी ह्वे सकद कि रात अकेला डर लगदी रै ह्वेली। 


मे पर विशेष क्रिपा छे किलै की प्रधानाचार्य गोकुल देव कुकरेती जी मेरी नानी गाँव बणांस छे मतलब मेरी मा मामा जी। जान पहचान तब भी काम आंदि छे जी। 


ह्वे यन कि वे दिन माँ तै पुंगड क्वी काम रै ह्वाल। चुल्लू माँ झुंगारू चढ़ै गे और मे कुण ब्वाल की कर्ची चलाणै रै और पक जालु आग बुझा दे। दादा आलु द्वी भै फांणु झुंगारू ख़ै कन चलि जैन। पकुद कन बतै ह्वालू पर याद नी। हाँ मी जोबरी ढक्कन उठै कर्ची चलैक दिखणै रौं कि पक कि ना। मितै पता छे कि चावल पकांदन पाणी पस्यै कन माँड़ निकालि दींदन। झुंगारू भी यनि हूंद ह्वाल। काफ़ी देर तक थडकणै रै और फिर एकदम सुखी गे। मीन स्वाच पाणी कम ह्वे गे मिज़ाण और द्वी गिलास पाणी डालि दे। खूब थडीकि गे पसाण शुरु कर। हाथ लगै रबड़ी बण्यूं छे। 


दादा रात स्कूल करीक सुबेर दस बजे तक खाणुक आंद छे ख़ै कन स्कूल जांद छे मान स्वाच हरि तेरी बजण वाली ! बस्ता उठै और भुखि स्कूल बाट लगि ग्यूं बीच मा दादा मील पर बतै कुछ नी। बताण भि क्या छे। दादा भी भुखि वापस गे! 


स्कूल हाफ टैम हुयूं छे। भूख से बेहाल। माता जी मुंड माँ एक थैला धर्यूं आंद दिखे गे। रोटी सब्जी बणै लाईं छे। 


दादा तै जब सब पता चल द्वी चार ज़रूर जमै ह्वेली पर याद नी! 


वे बाद कभी झुंगारू भात बणाणू मौका नी मील। 






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