दाँत गे, वेदांत ऐ! बल।
बाक़ी सब त हमार रिशी मुनी बतै गीन पर एक काम म्यार ज़िम्मा छोडि गीन-दांतों की वेदांत तककी यात्रा कु रहस्य ।
चमचा महंग ह्वे गीन बल त अपर ढोल अफीक बजाण पडनै च।
बच्चा बिना दांतू क पैदा हूंद किलै की दांत लेकि पैदा ह्वालु त दूध पींद पींद माँ क दुधि काटुल औरदर्द क मार दांत पिचकांद पिचकांद माँ की दांत झड जांद। भगवान सब सोचीक करदन ।
एक साल क अंदर दांत आण लगदन और पाँच क बाद एक एक करीक गिर जांदन और फिर नैपक्क दाँत आंदन। तब तक माँ क दूध भी बंद। मतलब माँ क दूध माँ भी ओवलटीन मिलाण पडलोक्या?
२५ साल तक आंद आंद अकल दाढ़ भी ऐ जांद पर अकल आणै की क्वी गारंटी नी!
पढै लिखै ख़त्म, नौकरी परिवार शुरू, और ज़िंदगी की लडै चालू। सर पर अपरि छत, ज़रूरत- बेजरूरत सामान, बच्चों की पढै! ६५ तक रिटायरमेंट, बच्चों की ज़िम्मेदारी लगभग ख़त्म!
आपाधापी क बीच दांत बचाणै की कोशिश-टूथपेस्ट, डेंन्टिस्ट, फिलिंग, रूट कैनाल और यख तककि पूरा नी त हाफ़ डेंचर । अब यन बताणै की ज़रूरत नी कि दांत नी हूंद त क्या हूंद! न बुखाणोंकी खंख्वाल न मुर्ग़ा की टांग! गन्ना छीलीक चबांण और चुसण त भूल जौ।
ई वु समय च जब अहसास हूंद कि जैन धरती पर भ्याज वै तै ही भूलि गेवां । कुछ दगड नी जाण।भगवान भजन मा ध्यान लगा, अगलि जनम संवार।
लोग बोलदन:
दुख में सुमरिन सब करें सुख में न सुमरे कोय,
जो सुख में सुमरिन करें, तो दुख काहे को हेय।
म्यार हिसाब से:
दांत गये सब सुमरत हैं, दांत रहे न सुमरे कोय,
दांत रहे सुमरिन करें, तो दांत गये का दुख ना होय ।
कैन सै ब्वाल- दांत गे वेदान्त ऐ!
No comments:
Post a Comment