Saturday, June 19, 2021

हमारा शरीर हमारी पाठशाला

हमारा शरीर हमारी पाठशाला


आज की कोविड महामारी ने साबित कर दिया कि अगर हमारे खून में आक्सीजन लेवल कम हो जाय तो हमारे शरीर के सब अंग कमज़ोर हो जाते हैं और समय पर इलाज हुआ तो मौत भी हो सकती है। ऐसा नहीं कि हमको पता नहीं था कि दम घुटना किसे कहते हैं पर अब और साफ हो गया कि दम घुटने का मतलब खून में आक्सीजन की कमी।


हमारे शरीर जैसी मशीन अभी बनी नहीं है। नक़ल करने की कोशिश हो रही हैं पर तब तक हमें यही मानना पडेगा कि इस मशीन की नक़ल कम से कम इंसान के बस में तो नहीं। हमारे शरीर के सारे बाहरी और भीतरी अंग एक दूसरे पर निर्भर हैं, कोई अपने आप में पूरा नहीं है। डाक्टर बीमार को समझाते हैं कि किस अंग की ख़राबी से यह हुआ और उपचार क्या है। यह बात अलग है कि हम तो डाक्टर से पूछते हैं बताते हैं। हमारे हाथ पैर दिमाग की आज्ञा पालन करते हैं और दिमाग हमारी आँख, नाक, कान, आँखें और स्पर्श से सूचना प्राप्त करता है। भीतरी अंगों - फेफड़े , दिल, लीवर, किडनी, आदि- का भी वही काम है। नाक से साँस रुकी नहीं कि दो मिनट में हिसाब बराबर। कुछ दिन खाना पानी नहीं मिला तो खेल खतम।लीवर ने गंदगी साफ़ नहीं की तो ऐंड। किडनी ने छलनी का काम रोक दिया तो आप जानते ही क्या हो सकता है। और दिल की तो पूछो ही मत! खून की सफ़ाई और रग-रग तक पहुँचाने का काम रोक दिया तो राम नाम सत। मतलब यह है कि सार सिस्टम एक आरकेस्ट्रा की तरह है जिसमें हर वाद्य यंत्र की भूमिका है और कोई बडा छोटा नहीं है। किसी भी यंत्र से ज़रा सी चूक हुई नहीं कि सारी धुन चौपट।


इसी सिद्धांत पर समाज भी चलता है। मानव जीवन बिना एक दूसरे की मदद से नहीं चल सकता। इसमें भी सामंजस्य की जरूरत है। हम सब रोटी कपड़ा और मकान के लिये एक दूसरे पर निर्भर हैं। कोई अन्न उगाता है, कोई कपड़े बुनता है तो कोई घर की दीवार और छत बनाता है। कुछ लोग अकेले भी यह कर सरकते हैं पर बहुत कष्टदायी और मंहगा पडेगा और बेवक़ूफ़ी तो होगी ही। दुनिया का सारा कारोबार लेन देन पर टिका है


हम सब धरती पर मेहमान या यात्री की तरह हैं जो कुछ दिनों में वापस चले जायेंगे। हमारे घर में जब कोई मेहमान या यात्री कुछ दिनों के लिये आकर टिकता है तो हम नहीं चाहेंगे कि वह किसी तरह का व्यवधान पैदा करे। ठीक उसी तरह हमें भी अपने छोटी सी यात्रा के दौरान धरती पर कोई व्यवधान पैदा नहीं करना चाहिये। शारीरिक अंगों की तरह हम भी समाज के अंग हैं जो अकेले कुछ नहीं है पर अपने फ़र्ज़ में जरा सी भी चूक कर जांय तो सारा समाज बिखर सकता है।


सुरक्षित रहें, शारीर से, मन से और सामाजिक ज़िम्मेदारी से स्वस्थ रहें।






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