Saturday, June 19, 2021

गढ़वाली मा लिखणै की कला


गढ़वाली मा लिखणै की कला 

कै भी भाषा मा लिखणै की सोच भी वीं भाषा मा ह्वा सै जगा पर सै शब्द बख़ुद जांद यनि गढ़वाली भाषा मा लिखणै की सोच भी गढ़वाली माँ हूण चायांद औरूकू पता नी पर म्यार सामणी एक समस्या मी जब गढ़वाली मा लिखण की कोशिश करदू सोचुदु हिंदी मा छौं! 

चार लाइन पढीक साफ़ ह्वे गे ह्वालू कि मि बुनै क्या छौं! 

यन नी कि मी गढ़वाल मा नि रै या हमार घर मा गढ़वाली नी बोलेंदी छे! बचपन साल गाँव मा रौं फिर कोटद्वार ग्यूं पर गाँव आण जाण लग्यूं रै! घर मा मा तै गढ़वाली ही आंदि छे! कभी देशी बोल्द ना सूण ना द्याख! पिता जी ज़रूर कभी-कभी देशी मा बोल्द छे ख़ास करीक जब ग़ुस्सा हूंद छे! ग़ुस्सा मा सब अपरि मात्रिभाषा भूल जांदन! हिंदी, गुजराती बोलण वाल भी अंग्रेज़ी मा भंड्यादन  

विषय गहन खोज पर मेरी तरफ़ से कुछ प्वाइंट्स:

 1. हमारी प्राथमिक शिक्षा हिंदी मा ह्वे शिक्षक गढ़वाली छे पर किताब हिंदी माँ, वूंक बि क्या कशूर! 

 2. हर दस मील बाद गढ़वाली शब्द जुड जांदन या बदल जांदन फ़ेसबुक पर विश्वेश्वर प्रसाद सिलस्वाल, केशव डुबर्याल मैती, विवेकानंद जखमोला शैलेश, राकेश जुयाल चार्ली (चार्ली मतलब कखी चार्ली चैपलिन नी ह्वाल?), भीष्म कुकरेती आदि सज्जनों लेख पढदु कत्ती शब्द पल्ला नी पडद, अंदाज़ लगाण पडद! 

 3. ज़िंदगी ज़्यादा समय यन जगह रौं जख क्वी गढ़वाली बोलण वाल नी मीलु कलकत्ता मा एक कैंथोला और एक बहुगुणा परिवार से परिचय ह्वे पर सब हिंदी मा बत्यांद छे! अब दिल्ली देहरादून मा भी यनि हाल छन बल! 

 4. गढ़वाली साहित्य से क्वी परिचय नि रै, ना कोशिश कैरि! गढ़वाली मा क्वी अख़बार दूर साप्ताहिक या मासिक पत्रिका बि नि छे! द्वी चार गढ़वाली लेखक कु नाम पता छे पर जन्येक तन्नि हिसाब! 

 5. फ़ेसबुक पर आण बाद पता चल कि कुछ लोग गढ़वाली मा लिखणै छन। गढ़वाली से लगाव छैं छे तो स्वाच ह्वे जा शुरू, और ह्वे बि ग्यूं। और फिर दे धड़ा धड़! लगभग पचास लेख चिपकै दींन! 

गढ़वाली भाषा हज़ारों शब्द अब हर्चि गेन! सामान्य बोल चाल की भाषा बहुत बदलि गे! अब शुद्ध गढ़वाली पल्ला नी पडदि! 

क्या ह्वे ह्वाल! 

?????????



No comments:

Post a Comment

Universal Language of Love and Hate.

Universal Language of Love and Hate. Sometimes, I wonder, why humans developed languages or even need them? If we look back, we will realize...