Thursday, October 1, 2020

कुवेत और उत्तराखंड

कुवेत और उत्तराखंड

कुवेत शायद अकेला देश है जिसकी ७०% जनसंख्या विदेशी है पर यह उनकी ज़रूरत है! खुद तो काम करना करना आता पर तेल का पैसा है तो परवाह इल्ले! कोविड में तेल की खपत कम हुई और दाम गिरे तो सोच रहे हैं कम से आधे विदेशियों को कम करना होगा! घर पर काम करने वाले, रसोइया, ड्राइवर आदि तो कम कर नहीं सकते ही डाक्टर या इंजीनियर! बीच वाले निकल जायेंगे

यह सब पेपरों में छपा है तो सब जानते ही हैं! मेरा अभिप्राय सिर्फ़ उत्तराखंड के बंधुओं को सचेत करना है

एक दिन उत्तराखंड में भी संभव है कि बाहर के लोग उन सब कामों को पकड़ लें जो हम नहीं करना चाहते करना जानते! यह मैदानी इलाक़ों में तो पहले से ही हो रहा है! देर नहीं कि ऊपर क़स्बों और ग्रामों में भी यही देखने को मिले और कहीं कहीं हो ही रहा है! नाई, धोबी, पानी के नल और बिजली के कनेक्शन लगाने और ठीक करने वाले, राज-मिस्री, सड़क पर काम करने वाले आदि! इन कामों को छोटा समझकर करना या सीखना या सोचना कि केवल जाति विशेष ही यह काम करें बड़ी भूल होगी

काम छोटा नहीं होता सोच छोटी होती है

जब भी शहरों या विदेश में रहने वाले हम यह प्रश्न उठाते हैं तो ड्राइंगरूम में बैठे शराबियों की बात कहकर हंसी में उड़ा दी जाती है! कुछ हद तक सही भी है! पर करने वाले धरातल पर कर भी रहे हैं जैसे फ़ीलगुड ट्रस्ट के संस्थापक सुधीर सुंद्रियाल जी और उनके साथी या पौडी गढ़वाल ग्रुप ! सब बाहर रहने वाले वापस लौट कर करके दिखायें तो संभव है ज़रूरी! सब के लिये तो पूरा उत्तराखंड छोटा पर सकता है 😂

पलायन पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, और अधिक कहकर यही कहुंगा कि पहले तुम पहले तुम के चक्कर में गाड़ी छूट जाय

कुवेत तो निकाल भी देगा क्योंकि लगभग सभी विदेशी कांट्रेक्ट पर हैं! हम तो वह भी नहीं कर पायेंगे क्योंकि सब देश के ही नागरिक हैं और हमारी तरह उनको भी देश के किसी भी कोने में काम करने की आज़ादी है




Universal Language of Love and Hate.

Universal Language of Love and Hate. Sometimes, I wonder, why humans developed languages or even need them? If we look back, we will realize...