फूक सरिकि ग्याइ
पब्लिक इंटर कालेज कोटद्वार की बात च जु कभी नि भूलि सकुदु। छटि क्लास मा छे। हिंदी की क्लास। शास्त्री जी हमार हिंदी क अध्यापक, बौत सख़्त। पढांद भी बौत प्यार से छे। मे पर विशेष क्रिपा किलै कि पिता जी से जाण पछांण त छेइ मी पढण लिखण मा भी हुस्यार छे बल। मास्टर जी क मे पर बौत विश्वास छे।
मास्टर जी क आण से पैली होम वर्क की कापी कठ्ठी कैक मेज़ पर रखण क काम म्यार ज़िम्मा छे। क्लास मा आंद ही पुछद जैकि होम वर्क की कापी यखम नी खडु ह्वे जा। बाद मा पता त चलण ही छे तो डर क मार जैकी कापी नी हूंदी खडु ह्वे जांदु। पैली बार चेतावनी, दुसर बार पैमाना से हाथ पर द्वी चार निशान, तिसरी बार क्लास से भैर जु बौत कम।
वे दिन भी तनि ह्वे। पता नी किलै पर वे दिन मी होम वर्क नी करि पै। त खडु ह्वे ग्यूं। सारी क्लास मा मी खडु छे। सारी क्लास मा चुप्पी।
मास्टर जी न प्यार से पूछ किलै नी कर होम वर्क।
मीन ब्वाल जी कर त छे पर कापी भूलि ग्यूं।
मास्टर जी तै पता छे घर नजदीक च। ब्वाल जा भागी कन जा और लै आ।
मीन ब्वाल जी घर क्वी नी।
अब मास्टर जी क चेहरा पर ग़ुस्सा साफ नजर आणै छे। ऊँ तै पता छे कि घर की चाबी मीम भी रंद। जनि मितै लग कि यू झूठ पकडे गे, मीन ब्वाल जी होम वर्क नी कर।
फिर क्या छे! ब्वाल-होम वर्क नी कर त क्वी बात नी कभी कभी ह्वे जांद पर झूठ पर झूठ! सामिणी पैली पंक्ती मा बैठुद छे। लंब हाथ क एक थप्पड़ दांय गाल पर, एक बांय गाल पर!
जब तक पीरियड खतम नी ह्वे, द्वी लाइन किताब से पढांद और द्वी चार थप्पड़ म्यार गाल पर रसीद करद। विश्वस हनन की सज़ा।
आज भी जब याद आंद त फूक सरिक जांद।
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