अल्ट्राक्रिपिडैरियेनिज्म
मैं स्टीवन डी लेविट और स्टीफन जे डबनर की फ्रीकोनौमिक्स और सुपर फ्रीकॉनॉमिक्स पढ़ रहा था, और इसमें ' अल्ट्राक्रिपिडैरियेनिज्म' आया जिस शब्द का उच्चारण करना तक मुश्किल था और जिसका अर्थ है- "ज्ञान और क्षमता के बाहर के मामलों पर राय और सलाह देने की आदत" ने मुझे आकर्षित किया क्योंकि किसी भी भाषा के सबसे कठिन तीन शब्द हैं, I don't know 'मुझे पता नहीं है'।
एक कारण यह है कि 'मुझे पता नहीं है' कहने से विशेष रूप से प्रतिष्ठा को ठेस लगती है। कोई भी बेवकूफ नहीं दिखना चाहता है इसलिए सर्वज्ञानी दिखना चाहिये। साथ ही अगर आप गलत हैं, तो लोग समय के साथ भूल जाएंगे। उदाहरण के लिए बेजान दारूवाला की भविष्यवाणियाँ।
ये सर्वज्ञानी लोग हर क्षेत्र-राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, खगोल विज्ञान, घरेलू उपचार, शेयर बाजार, आदि में मिल जाते हैं और हर विषय के बारे में जानते हैं।
हम गुगल के एक युग में रहते हैं और हर जानकारी स्वतंत्र रूप से बह रही है, इसलिए 'मैं नहीं जानता' कहने वाले लोगों की संख्या कम है, लेकिन साथ ही सलाह लेने वाले लोगों की संख्या भी कम है। बाबा गूगल 24x7 उपलब्ध होने पर किसे सलाहकार की आवश्यकता होती है। कुछ तो गुगल से टीप कर अपने नाम से चिपका देते हैं।
लेकिन फिर भी ऐसे समय होते हैं जब 'मुझे नहीं पता' किसी ऐसे व्यक्ति के लिए मददगार होता है, जो बिना फ़ीस के सलाह नहीं देते। खासकर जब कोई किसी जगह की दिशा या अवैतनिक सलाह मांग रहा हो। सैंकड़ों सलाहकार सलाह की फ़ीस पर ज़िंदा हैं रहते हैं। यह एक पेशा है।
मुझे पता नहीं है या मालूम करके बताऊँगा कहने में शर्म किस बात की? वैसे भी यह अल्ट्राक्रिपिडैरियेनिज्म बोलने में ही ज़ुबान लड़खड़ा रही है तो चाहें भी तो तुरंत निकलेगा नही कि मैं अल्ट्राक्रिपिडैरियेनिज्म का पुजारी हूँ।
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