प्रिय श्वान प्रेमियों,
जब कभी आप को अपने प्यारे पप्पी को गोद में लिए देखती हूँ, आपके टामी द्वारा आपके मुँह को चाटते देखती हूँ या फिर अपनी नूरा को चूमते देखती हूँ तो मुझे उनके भाग्य से जलन होती है और सोचती हूँ काश मैं भी किसी की नूरा होती!
पर क़िस्मत में तो गली के श्वानों के साथ ज़िंदगी बिताना लिखा था!
इसमें मेरी क्या गलती कि मेरा जन्म श्वान परिवार में हुआ और वह भी एक श्वानी के रूप में? मुझे मालूम है आप कुत्ता या कुतिया बोलते हो!
इसमें मेरी क्या गलती कि मैं कम उम्र में ही हर छः महीने में छ छ बच्चों को जन्म देती हूँ?
इसमें मेरी क्या गलती कि मैं सड़कों और गलियों में पैदा हुई, पली, बढ़ी, और वह भी एक दिल्ली जैसे बड़े महानगर में?
फिर भी अपने आप को मनुष्य समझने वाले मेरे भाई बहिनों के दुश्मन क्यों हैं?
बीच बीच में आकर क्यों हमको ट्रक में लादकर ले जाते हैं और इंजेक्शन देकर हमेशा के लिये माता पिता बनने से वंचित कर देते हैं ? अपनी आबादी कम कर नहीं पाते तो हम पर नुक्से आज़माते रहते हो!
कहते हैं हमने तांडव मचा रखा है! सड़क पर आते जाते लोगों को, बच्चों को काट देते हैं । अपना बचाव करना ग़लत है क्या? वे हम पर पत्थर फेंके, हमें डंडे से मारें और हम दुम दबाकर भाग जायं?
पहले हमको पालतू बनाया अपनी सुरक्षा के लिये और घर के अंदर रखने ले आये विदेशी नस्ल के कुत्ते । सड़क पर छोड़ दिया हमको मरने के लिए! इससे तो हम जंगली ही थे!
तुम क्रूर हो, मतलबी हो, पक्षपाती हो! किसी को पालतू बनाकर साथ खिलाते पिलाते हो और किसी को म्यूनिसिपालिटी वालों को बुलाकर ट्रक में लदवा देते हो!
यही नहीं आज जिन पप्पी, टौमी, नूरा को गले लगा रहे हो कल बीमार पड़ गए तो बेसहारा भी छोड़ सकते हो। हमने देखा है बेचारे कितना अकेला महसूस करते हैं अपने आप को । हम सड़क छाप के साथ घुलमिल नहीं पाते !
आप में से कई हैं जो सच्चे दिल से हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं! कई हैं जो हमें पेट भर खिलाते पिलाते हैं । काश उन जैसे सब होते !
( अपने झबरू को गोद में लिये बालकनी में खड़े खड़े , ट्रक पर लादी गई गली की पागल करार कुतिया की आंशू टपकाती आँखें मुझसे जैसे यह सब कह रही थी)
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