Tuesday, September 1, 2020

KEWAL KAMJOR HI SAKARATMAK HOTE HAIN

 


केवल कमजोर ही सकारात्मक होते हैं


मेरा मतलब यह नहीं है कि मज़बूत लोग नकारात्मक होते हैं लेकिन मतलब यही निकलता है जब मैं कहता हूँ कि केवल कमजोर ही सकारात्मक होते हैं क्योंकि यह साफ़ नहीं है कि मजबूतों में कितने प्रतिशत सकारात्मक होते हैं और कमजोरों में कितने प्रतिशत नकारात्मक होते हैं साथ में इसलिए भी कि इस महत्वपूर्ण विषय पर अभी तक कोई रिसर्च नहीं की गई है और इसमें मेरा कशूर नहीं है महज़ इसलिए कि अधिकारियों, वो जो भी हों, द्वारा मुझे यह काम सौंपा ही नहीं गया ही सत्ताधारी पिरामिड में किस को कहाँ बिठायें में मेरा कोई हाथ है ही मुझे यह बताने में कोई शर्म है कि मास्लो के पिरामिड में मैं नीचे से दूसरे पायदान पर हूँ और भारतीयों को, जिनमें मैं भी हूं, विदेशियों को उद्धरित कहने में शान का एहसास होता है 




चाहे दूसरे पायदान पर खड़ा मैं कितना भी बरड बरड करता रहूँ सुनेगा कोई नहीं क्योंकि दूसरे पायदान पर खड़ा जो खुद की सुरक्षा कर सके दूसरे उसकी सुनकर क्यों अपने को ख़तरे में डालेंगे

हाँ तो मैं कह रहा था कि केवल कमजोर ही सकारात्मक होते हैं और जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो इतनी सारी शिक्षा और प्रवचनों के बाद कि हर हाल में सकारात्मक रहूँ और एक दिन सबके साथ न्याय होगा, बुराइयों का अंत होगा, सच्चाई, प्यार, मानवता की जीत होगी और मेरे जैसे कमजोर उनकी सुनते रहे , सकारात्मक बने रहे पर ऐसा कुछ हुआ नहीं, हुआ उल्टा ही, हालात बद से बदतर हो गए जबकि मुझे चाहिए था कि एक मज़बूत की तरह नकारात्मक होकर आगे आकर ग़लत काम करने वालों से टक्कर लेता या उन्हीं के पदचिह्नों पर चलकर पैसा बनाता, सही या ग़लत तरीक़े से आगे बढ़ता जिससे आज पछताना पड़ता कि क्या फ़र्क़ पड़ता कि लोग कमजोर कहते या मज़बूत , सकारात्मक कहते या नकारात्मक जब तक मैं ऊँचे पायदान वालों के साथ या उनसे भी ऊँचे पायदान पर खड़ा हूँ क्योंकि दुनिया तो मुझे मेरी कमज़ोरी पर सजा देगी मज़बूती पर ईनाम और दुनिया को कोई परवाह नहीं कि कैसे और क्यों और कौन और कब और कहाँ और क्या सही है और क्या ग़लत है क्योंकि अगर कुछ मायने रखता है तो सफलता कि सफलता कैसे मिली दुनिया को मतलब कि सच्चाई, प्यार , मानवता का क्या हुआ और कहाँ कुचले गए चाहे कमजोर सकारात्मक कितना ही मन मसोसते रहें  

आज इतना ही, एक धार में लिखते रहने से पता ही नहीं चला कि पूर्ण विराम कहाँ लगाना है और हल्की आवाज़ में पढ़ने लगा तो साँस भी अटक गई  
















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