Saturday, September 12, 2020

थका देने वाला 'मैं'

 . मैं, मुझे और मेरा-थका देने  वाला 'मैं


हाँ! मैं खुद को खुद थका सकता हूँ, उसके लिये किसी दूसरे की जरूरत नहीं है।


कभी कभी मैं खुद को सुनना बंद कर देता हूँ। कभी कभी नहीं, अक्सर। मैं दो 'मैं' का बना पुतला हूँ -एक जो बाहर है जो सबको दिखता है और दूसरा जो अंदर है केवल मुझको दिखता है। 


ये अंदर वाला 'मैं' ही मुझे बहुत थकाता है। बाहर वाला 'मैं' तो बहुत अच्छा है, मुझे बहत पसंद भी है। मेरी  किसी भी बात में दख़लंदाज़ी नहीं करता बल्कि मुझे प्रोत्साहित करता रहता है कि मैं जो चाहूँ कर सकता हूँ। 


यह अंदर वाला 'मैं' बोलता रहता है, बातूनी कहीं का! ईमानदारी की बात तो यह है कि मैं इस अंदर वाले 'मैं' से हर बात में सहमत हूँ -जैसे सच बोलना चाहिये, ईमानदार होना चाहिये, दयाभाव रखना चाहिये, क्रोध नहीं करना चाहिये, अपना कर्म करूँ और फल से लगाव रखूँ आदि आदि। तब तो मैं इस अंदर वाले 'मैं' से शतप्रतिशत सहमत हो जाता हूँ  निभाने का वादा भी करता हूँ पर वादा करते ही वादा टूट भी जाता है। 


बार बार बोलता है कि जो खुद नहीं करता उसका प्रवचन करूँ। मैने कहा हाँ पर 'हां' कब भूल जाता हूँ पता ही नही चलता फिर शुरू हो जाता है उपदेश पर उपदेश। 


एक के बाद उपदेशात्मक लेख लिखता रहता था। अंदर वाले 'मैं' को दिया वादा याद आया और लिखना बंद कर दिया। फिर पता नहीं कैसे क़लम चलने लगी और लगा उपदेश देने मानो इस धरती पर मैं ही एक अकेला संत बचा हूं। 


कई बार वादा किया कि सिगरेट शराब पर हाथ नहीं लगाउँगा पर निभा नहीं पाया। टूटे वादों की लंबी लिस्ट है। कुछ वादे तो लगा कि मैंने निभाना शुरू कर दिया है पर जब उसे बताया तो बोला 'मेरे कहने पर नहीं, किसी और कारण से निभा रहे हो, डाक्टर के कहने पर' बात तो सच है। 


आश्चर्य की बात है कि इसकी सलाहों में कुछ तो वही हैं जो माता-पिता ने दीं थीं। उन्होंने कहा था  -बड़ों का सम्मान करो, जानबूझकर किसी को चोट मत पहुँचाओ, चोरी मत करो, और ऐसे ही कुछ और। माता-पिता की सलाह को मैं मानता रहा हूं, मानता हूँ ओर मानता रहुंगा पर इसका श्रेय अंदर वाले 'मैं' को क्यों दूं


कई बार कहा बहुत हुआ, बंद करो ये टोका टोकी। बाहर वाली दुनिया को तू नहीं जानता, मैं जानता हूँ तेरा क्या अंदर छुपा रहता है, सामना तो मुझे करना पड़ता है   माने तब ! थका कर रख देता है! खुद शांति से रहता है, मुझे रहने देता है। 


आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ!!! 


थक गये हों तो फ़ुर्सत में पढ़ सकते हैं , अभी और भी है 




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