Tuesday, September 1, 2020

CORONA PAR KABHI NA RONA -KAVITA

कोरोना पर कभी रोना -कविता 

कोरोना-तू जो भी है, निकल! (Co-Crown+vi-Virus+D-Disease+19-2019=Covid-19)


तू कभी भूत सा लगे है, कभी लगे है चुडैल सी,

कीड़ा सा लगे है,कभी अजीब बीमारी सी।

कोरोना! तुझे चीन से आई, कहूँ कि चीन से आया

तू जो भी है दफ़ा हो, है तूने सबको रुलाया। 


कहने को तुझको किन्नर भी कह सकूँ हूँ

पर शिखंडी की बेइज़्ज़ती सह सकूँ हूँ

दिखाई तो नहीं देता पर छिपेगा कहाँ तक ,

हमारे सिपहसलारों से बचेगा कहाँ तक। 


कोरोना नाम लेके, बदज़ुबान बनूँ क्यों

अशोक के मुकुट का अपमान करूँ क्यों।

भला कौन है जो तुझे माथे पर बिठायेगा

थाली, ताली बजाके, खुद को शरमायेगा।


कम्बख़्त! पहले से गंभीर बीमार ग्रसित,

लाकडाउन, गरीबी लाचारी से त्रसित।

साधन डाक्टर हस्पताल दवाई,

कहाँ जायेंगे, हुए वादे सब हवाई हवाई। 


पर अकेले ही तुझे दोष दूँ तो क्योंकर ,

जब मेरे अपने ही रहे मेरे होकर।

मैं तेरी करतूत भूल जाऊँ इससे पहले,

निकल जा ज़ालिम मेरे पिघलने से पहले।


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