Saturday, September 26, 2020

मेरे सपने

. मैं, मुझे और मेरा- मेरे सपने 


मुझे सपने आते हैं .....


-कौन सी बडी  बात है? सपने सबको आते हैं। तुम कोई खास हो क्या?


मैं बताता हूँ.....

- जानता हूँ क्या कहोगे! यही कि पाँच बजे उठता हूँ, मतलब फ़ोन पर अलार्म सेट कर रखा है पाँच बजे का, बजता है तो उठ जाता हूँ, पता नहीं सो रहा होता हूँ कि जाग रहा होता हूँ वग़ैरा वग़ैरा


मुझे बोलने तो दो, बीच में ही टोक देते हो.....

-तुम बोल तो रहे हो! हर समय वही शब्द दोहराते रहते हो! सपने में जो दिखता है सब सच लगता है जैसे वाक़ई हो रहा है वग़ैरा वग़ैरा


भगवान के लिये.....

इसमें भगवान कहाँ से गया? बात तुम्हारे और मेरे बीच तुम्हारे सपनों की हो रही है ! कई बार कहा मुझ में विश्वास रखो पर तुम हो कि सुनते ही नहीं


हमेशा.....

-हमेशा क्या? तुम मैं हो, मैं तुम हूँ। समझते क्यों नहीं


लेकिन एक रात.....

- कई बार कह चुके हो! तुम दौड़ने की कोशिश कर रहे थे पर तुम्हारे पाँव उठ ही नहीं रहे थे! पर तुम तो ज़िंदा हो, बाघ ने खाया तो नहीं जिसके देख कर भागने की कोशिश कर रहे थे!


इतना ही नहीं.....

-मालूम है ! तुमको सामने भगवान दिखे पर तुम उन तक पहुँच नहीं पाये क्योंकि तुम्हारे पाँव उठे ही नहीं! कम से कम तुमको दिखे तो, सपने में ही सही! भगवान तक पहुँचने के लिये बहुत कुछ करना पड़ता है। 


और फिर एक रात.....

-तुम अपने माता पिता के साथ बैठ कर खाना खा रहे थे जिनको दिवंगत हुये कई साल हो गये! जैसे तुम उनको याद करते हो, वे भी तुम्हें याद करते हैं, सबके माता पिता यही करते हैं


समझने की कोशिश करो.....

-कैसी कोशिश? कि तुम अपने चहेते रेस्टोरेंट टीजीआईएफ में दोस्तों के साथ गुलछर्रे उड़ा रहे थे और अचानक वह एक बहुत बडी लेक बन गई जो चारों तरफ से पहाडों से घिरी थी और तुम को बाहर का रास्ता नहीं सूझ रहा था और तुम्हारे दोस्त भी नजर नहीं रहे थे ब्ला ब्ला .. कई बार कहा कि दारू कम पिया करो। 


इतना कठोर तो बनो.....

-कठोर और मैं? तुम खुद पर कठोर होते जा रहे हो। हर वक्त सपने देखते रहते हो। आफिस के सपने जहाँ अब तुम्हें कोई याद तक नहीं करता, दोस्त जो जाने कहाँ हैं और तुम्हारी तरह सपने देख रहे होंगे, जगहें जिनसे अब तुम्हें कोई लगाव नहीं। जरा खुली आँखों से देखो और सोचो। जो तुम सपनों में देखते हो वही हैं जो तुम जागते समय सोचते रहते हो। वह हाल की बात हो सकती है या वर्षों पुरानी बात। सपने जाग्रत अवस्था के दिमाग़ की परछाईं भर हैं जिनका संबंध उन लोगों से है जिनको तुम जानते थे या हो, उन जगहों से है जहाँ जहाँ तुम गये या जाते हो, सफलता-असफलता, प्यार-नफ़रत, दया, क्रोध, जैसी भावनाओं से है जिनसे तुम गिरे या गुज़र रहे हो। 


-मैं यह सब जानता हूँ और तुम नहीं क्योंकि सारा वज़न मेरे सर पर रहता है। मेरे पास कोई उपाय भी नही क्यों तुम्हारी सुप्त अवस्था में मुझे तुम्हारी देखभाल करनी है, तुम्हें चौकन्ना रखना है। कुछ सपने तुम्हें डरा भी सकते हैं ताकि तुम्हें याद रहे कि तुम जितना शक्तिशाली अपने को समझते हो, उतना हो नहीं। तुम्हारी भी कमज़ोरियाँ हैं, तुम डर भी सकते हो, रो भी सकते हो, मजबूर, बेसहारा हो सकते हो। 


-अपनी याददास्त पर गर्वित मत हो। यादें बहुत मतलबी होती हैं, पक्षपाती होती हैं। तुम्हारी ग़लतियों को नहीं बतायेंगी, जिन लोगों ने तुम्हारा हर हाल में साथ दिया उनकी याद नहीं दिलायेंगीं। 


-तुम कहते हो तुम्हें  वर्षों पुरानी बातें याद हैं, बकवास। पिछली रात या उससे पहली रात को क्या खाया था वो तक तो याद नहीं और बात करते हो वर्षों की! अगली घड़ी का तो पता नहीं और स्कीमें बनाते हो आने वाले कल, महीने, साल की


-जो कुछ है बस आज है, कल वाला कल चला गया, आने वाला कल का पता नहीं। आज में रहो, आज में जियो। नींद भी अच्छी आयेगी और सपने भी सुहावने


सपने सुहाने ...... देखते रहिये। आगे बढ़ते हैं। 




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