जब अनपेक्षित होता है
हम दोनों मार्निंग वाक के साथी हैं। पास के बाग़ीचे में ही उससे जानपहचान भी हुई थी। बस इतनी ही जान पहचान है। बहुत ख़ुशमिज़ाज आदमी, यह करना है, वह करना है, यहाँ जाना है, वहाँ जाना है, बस प्लान पर प्लान। मैं कहता हूँ रिटायर हो गये हो, मज़े लो। बिना पूछे ही सारी बातें बताता है।
कुछ समय से मुँह में किसी छाले की बात कर रहा था। अपने फेमिली डाक्टर को दिखाया, उसने कहा कुछ खास नहीं, एक माउथ ज्यल लगाने को कहा, कुछ आराम मिला पर फिर उभर आया। डाक्टर ने कोई ऐन्टीबाइओटिक्स लिखी और स्पेलिस्ट को दिखाने की सलाह दी। कुछ शक हुआ, कुछ चिंता पर घर पर किसी को नहीं बताया।
इंटरनेट तलाशा, सिम्टम्प्स कैंसर की ओर इशारा कर रहे थे। खुद को तसल्ली दी- यह नहीं हो सकता, ३० साल पहले सिगरेट छोड चुका हूँ, तंबाकू खाता नहीं, मुँह की अच्छी तरह सफ़ाई रखता हूँ। कभी कुछ गलत नहीं किया, किसी को नहीं सताया, भगवान से डरता हूँ, ईमानदारी और सच्चाई के साथ परिवार पालता हूँ। नहीं ऐसा नहीं हो सकता!
पर कुछ तो करना ही होगा। स्पेलिस्ट, जिसको डाक्टर ने सुझाया था, के पास जाना ही पडा। घर में अब भी किसी को नहीं बताया, फ़ालतू परेशान होंगे सोचकर। टाइम आने पर बता देगा।
स्पेलिस्ट ने चेक किया और कहा ऐसा कुछ नही है, डरने की कोई बात नहीं है। फिर भी बाइओप्सी करने मे कोई हर्ज नहीं है, और पक्का हो जायेगा कि सब ठीक है। यह बोलकर सर्जन के पास जाने की सलाह दे दी। बाइओप्सी का नाम सुनते ही, शक पक्का होता नजर आया। सर्जन से एप्वाइनमेंट लेने की कोशिश की पता चला बाहर गया है। कुछ दिन के बाद मिला। सर्जन ने भी चेक किया, एक क़तरा काटा और बताया कि बाइओप्सी की रिपोर्ट आने पर ही कुछ बता पायेगा पर बहरहाल चिंता करने की कोई बात नहीं है।
रिपोर्ट आने तक क्या बीती वही जानता था। कुछ नहीं है, रिपोर्ट निगेटिव निकलेगी। पर पौजिटिव निकली तो? समय से पहले ही मर जायेगा। सारे रटे रटाये बोल याद आ गये। मौत का डर उसी को होता है जिसने जिंदगी जी है। मौत निश्चित है बाकी सब अनिश्चित । सारी परेशानी का कारण जन्म है और परेशानियों से छुटकारे का मौत। कई चिंतायें जलती देखीं है, ढाढ़स भी दिया है। घबराइए नहीं, मज़बूत रहिये। अब लग रहा है, कितनी खोखली बातें थीं। जब खुद पर गुज़रती है तो सारा ज्ञान धरा रह जाता है।
पीछे मुड़ कर देखा तो जिंदगी की सारी जद्दोजहद याद आ गईं। कई सवालों का तो जबाब नहीं मिला। क्या मौत उन सब का जबाब है? या फिर वे सब सवाल ही बने रहेंगे? मौत कैसी होती होगी- ठंडी, अंधकारमय, अकेली? जीवित आदमी तो जानता है कि मौत निश्चित है पर मौत को भी कुछ पता रहता है कि जीवन क्या है?
ऐसे कई सवाल हैं जो उसे भूत की तरह घेरे हुये हैं। घड़ी के पांडुलिपि की तरह लेफ़्ट राइट, लेफ़्ट राइट, उम्मीद नाउम्मीद, उम्मीद नाउम्मीद!!! मार्निंग वाक् पर यही बातें करता है। मैं समझाता हूँ, सकारात्मक रहे, कुछ नही होगा, साइंबहुत तरक़्क़ी कर चुकी है, कैंसर अब असाद्ध्य रोग नही है। मैं जानता हूँ अगर रिपोर्ट पौजिटि आई तो सब बेकार सा लगेगा।
मैं प्रार्थना कर रहा हूँ कि रिपोर्ट निगेटिव आये और मैं कह सकूँ, देखो मैं कहता था न!!
No comments:
Post a Comment