बंदूक़ की वापसी
कल यह सवाल उठाया था, आप लोगों की सलाह का आभार!
“मेरा दोस्त कहीं बाहर गाँव जा रहा था तो अपनी बंदूक़ मेरे पास रख गया।वापस आया तो ग़ुस्से से भरा हुआ था और बोला मेरी बंदूक़ देना ज़रा।क्या मैं दे दूँ?”
यह एक काल्पनिक अवस्था ही थी वरना कहाँ समय मिलता की आपकी सलाह ले सकूँ और वह भी फ़ेसबुक पर! पर संभव है किसी के साथ घटी हो या घट जाए !तैयारी रहनी चाहिए 😆
किसी ने कहा दे दूँ, किसी ने कहा ग़ुस्से में है तो बिल्कुल नहीं, या पहले उसका ग़ुस्सा शांत करवाऊँ, या अमानत हैदेनी तो चाहिए, या गोली निकाल कर देने की सलाह दी, या हो जाने दो सफ़ाया, या दे दूँ बंदूक़ साफ़ करनी होगी आदि आदि!
अब मेरे सामने कई सवाल हैं:
1.वह मेरा दोस्त है और उसकी और उसके परिवार की भलाई को ध्यान में रखते हुए जब तक उसके ग़ुस्से का कारणन जान लूँ बंदूक़ कैसे दे दूँ? अगर ग़ुस्से का कारण जानकर पता चला कि गुनाहगार को सजा मिलनी ही चाहिए तो क्या क़ानून को अपने हाथ में लेना सही है? क़ानून कासहारा लिया तों वर्षों तक केस कोर्ट में घिसटतारहेगा! ऊपर से किसी बड़े बाप का बेटा होगा तो उल्टा मेरा दोस्तही फँस जायेगा! क्या स्ट्रीट जस्टिस ही सही है?
2.बंदूक़ उसकी है मेरे पास अमानत के रूप में और मुझे मनाकरने का कोई हक़ नहीं है .होना तो यही चाहिए पर अमानत में खयानत तो रोज़ ही हो रहे हैं! बैंक ग़रीबों के डिपोजिट डकार रहे हैं! नेता लोगअपने किये वादे खुद ही निगल जा रहे हैं! सरकारें जनता की वोट वाली अमानत हज़म कर जाते हैं! डिपोजिट रक़म का हो या वादों का या वोटों का, डिपोजिट तो डिपोजिट ही होता है! डिपोजिट का मतलब विश्वास और विश्वास का मतलब सच्चाई और सच्चाई का मतलब न्याय! न्याय करने वाला ताकतवर होता है और चाहे तो सच्चाई क़ायम करें न चाहे तो न करे! न्याय माँगने वाला कर भी क्या सकता है? मेरे पास तो बस एक-नाली बंदूक़ है अमानत! एक-नाली बंदूक़ ने मुझे इतना ताकतवर बना दिया है कि चाहूँतो वापस करूँ न चाहूँ तो न करूँ और ज़्यादा चपड़ चपड़ करेगा तो गोली तक मार सकता हूँ सरकारी पुलिस की तरह!
3.कहीं ऐसा तो नहीं कि उसका ग़ुस्सा मेरे पर ही हो? ग़लतफ़हमी भी हो सकती है! किसी ने भड़का दिया हो! आजकल सब संभव है! रोज़ समाचार मिलते रहते हैं कि
अमुक ने अमुक को गोली मार दी! रोज़ पढ़ने सुनने को मिलता कि अमुक नेता अमुक पार्टी को छोड़कर अमुक पार्टी में शामिल हो गया! कल तक जो एक थाली में खाते थे उसी में छेद कर रहे हैं! कल तक साथ जीने मरने कीकशम खातेथे आज एक दूसरे की जान लेने पर उतारू हैं कहाँ तक गिनाऊँ? बंदूक़ दे दूँ और पलट कर मुझी पर वार कर दिया तो? सफ़ाई तक नहीं दे पाऊँगा!
4.यह भी हो सकता था कि चोरी की बंदूक़ थी और मेरे पास रख गया हो यह सोचकर कि कोई मेरे पर शक नहीं करेगा माना कि मेरी अपनी साफ सुथरी
साख है पर धब्बा लगने में कितना समय लगता है?
5.यह भी हो सकता था कि इस बीच मेरे घर से बंदूक़ चोरी हो जाती तब क्या जबाब देता? क्या मेरे जबाब से उसे तसल्ली होती?
6.यह भी हो सकता था कि पुलिस को भनक पड़ जाती ghaर आ धमकती कि बिना लाइसेंस के मेरे पास बंदूक कयों और कहाँ से आई? सारी बनी बनाई साख
मिट्टी में मिल जाती! ओ तो साफ मुकर जाता कि उसकी बंदूक़ है ही नही! घर पर बीबी बच्चे ताने देते सो अलग.
7. मुझे बंदूक़ रखनी ही नही चाहिये थी दोस्ती अपनी जगह पर और ग़ैरक़ानूनी काम अपनी जगह पर!
8. सोच रहा हूँ पुलिस को सूचित कर दूँ और दोस्त के घr वालों को सजग कर दूँ कि इस हालत में उसका खास ख़याल रखें पता नहीं घर वाले क्या सोचेंगे ? कहेंगे भली दोस्ती निभाई! और फिर पुलिस वालों का भी क्या भरोसा?
9.सब तरफ़ से जाँच परख कर इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उससे बात करूँ! कारण पता करूँ और दोनों मिलकर समाधान ढूँढने की कोशिश करें! उसे उसके परिवार का वास्ता दूँ! अपनी वर्षों की दोस्ती का हवाला दूँ! तंत्र और न्याय पर उसके अधिकार की याद दिलाऊँ! उसे भरोसा दिलाऊँ कि सब कुछ नहीं बिगड़ा है!देश में सरकार है वो भी जनता की चुनी हुई! नेता हैं जिसपर भरोसा किया जा सकता है! न्यायालय हैं जहां आज भी न्याय होता है! कुछ पत्रकार अब भी बचे हैं जो
जनता की आवाज़ उठाते हैं!
10.इसके बाद भी नहीं माना और लगा कि गुनाहगार को सजा देना ज़रूरी है और वह भी तत्काल तो ठीक है! चलपड़ूँगा साथ में दोस्ती निभाने! स्ट्रीट जस्टिस कब कामआयेगा?
थोडा लंबा खिंच गया है और तब भी सवाल बचे हैं।
ख़ैर आप लोग हैं तो सब संभाल लेंगे!
आमीन !!!!!