Friday, August 4, 2017

कहानी चोरगदन की (भाग - १- जंगली संपत्ति का दोहन)
         
दो तीन सदी पहले की बात है। भारत के उत्तराखंड मे बनचूरी गाँव के पास चोरगदन नाम का बहुत घना जंगल था। इसका नाम चोरगदन क्यों पड़ा कहना मुस्किल है । बहरहाल अभी हम इसको यहीं छोड़ते हैं, बाद मे समय मिला तो पता करेंगे। यहाँ यह बताना काफ़ी होगा कि इससे चोरों का वास्ता रहा होगा। इस कहानी का मुख्य विषय यह नही है कि चोरगदन नाम क्यों पड़ा, बल्कि चोरगदन का क्या हुआ। इसलिये हम मुख्य विषय से न भटक कर आगे बढ़ते हैं।

जैसे मैंने कहा, चोरगदन एक बहुत बड़ा और घना जंगल था। जंगल मे अनेक प्रकार के पेड़ थे। इसके बीच से एक छोटी पहाडी नदी बहती थी जो जाकर हेंवल नदी मे मिलती थी। गाँव वाले इसको गदन कहते थे। शायद चोर और गदन को मिलाकर चोरगदन नाम पड़ा होगा। जंगल मे बहुत सारे जंगली जानवर रहते थे जैसे शेर, चीते, भालू, बाघ, हाथी, लोमड़ी, हिरण, आदि। इनके साथ ही सुअर, बंदर और बहुत सारे पशु पक्षी भी रहते थे। एक आध छोटी मोटी घटनाओं को छोड़कर जंगल मे सब मिलकर रहते थे।

जंगल के आस पास कई गाँव बसने लगे। उनमें से बनचूरी, रिखेडा, सार प्रमुख हैं। बसने वाले लोग सीधे सादे थे। वे भी कई कारणों से यहाँ आकर बसे थे, जरूर कोई बड़ा कारण रहा होगा। कोई यों ही अपना वतन नही छोड़ता। ग़रीब थे, खेती करके अपना और अपने परिवार का पोषण करते थे। कभी कभी जंगली जानवर उनकी फ़सल बरबाद कर देते तो कभी कभी ओ किसी हिरण को मारकर खाने का स्वाद बदल लेते। इसके अलावा बाकी सब ढीक चल रहा था।

समय कब एक सा रहा है। पिछली सदी की बात है। जंगल से जानवरों के ग़ायब होने की ख़बर आने लगी। लगभग हर जाति के जानवर उनके परिवार से किसी न किसी के ग़ायब होने की ख़बर सुनाते। सारे परेशान होकर जंगल के राजा शेर के पास गये और गुहार लगाई। राजा खुद परेशान था। उसके और उसके कुनबे से भी कुछ शेर और बच्चे ग़ायब थे। आपस मे काफ़ी तकरार हुई। यहाँ तक कि किसी ने राजा को ही बदलने की बात कह दी। शेर ने कहा वह पद छोड़ने को तैयार है पर संभालेगा कौन। हाथी की तरफ़ नज़र गई तो ओ भी चुप। चीता, भालू आदि भी चुप। एक बात पर सब सहमत थे कि यह काम मनुष्यों का ही है। बनचूरी, रिखेडा या सार वाले तो ऐसा नही करेंगे पर कह भी नही सकते।

पीछे कहीं से किसी ख़रगोश की आवाज़ आई। " मै किसी को मार तो नही सकता पर मै मालूम कर सकता हूँ कि किसका काम है। गाँव वाले मुझसे डरते भी नही। मै आसानी से उनमें घुलमिल सकता हूँ। मेरा सारा परिवार इधर उधर फैलकर मालूम करेगा कि यह काम किसका है फिर आप उनको सज़ा देना। " ख़रगोश की बात से सब सहमत हुये। बंदरों ने ऊँचे पेड़ों पर बैठकर निगरानी करने का  ज़िम्मा लिया। चीता को पूरे काम का ज़िम्मा सौंपा गया। कुछ ही दिनों मे पता चला कि बाहर से लोग आकर जानवरों को जाल मे फँसाते, उनका मुँह बंद करते और रस्सी से खींचकर  ले जाते। उनमें से कोई भी पास के गाँव का नही था। दो एक पकड़े भी गये पर बाकी भाग गये।ख़ैर समस्या हल हो गयी।

इधर गाँव मे ख़बर आई कि गदन मे दो आदमियों की लाश पाई गई। दोनों गाँव के लोग नही थे। बाहरी लगते थे। जिज्ञासा हुई कि कौन थे और किसने क्यों मारा। देखने से साफ़ लगता था कि जानवरों ने मारा था। ऐसा पहले कभी नही हुआ था। जानवरों ने फ़सलों और पालतू जानवरों को तो नुक़सान पहुँचाया था पर तीनों गाँव के किसी आदमी को नही मारा था।

बात की गहरायी मे जाने से पता लगा कि शहरों से कुछ लोग जानवरों को पकड़ कर ले जाते और अच्छे दामों पर बेचते। जानवरों की हड्डियों से दवा, चमड़े से चमकीले लिवास, थैले, बटुवे आदि बनाकर ख़ूब सारा मुनाफ़ा कमाते। कुछ को अजायब घरों मे बेच देते। काम थोड़ा जोखिम वाला था पर फ़ायदा बहुत था।

फिर क्या था ।  गांव के कुछ लोग चुपके चुपके यह काम करने लगे। शहर मे ख़बर गरम हो गई कि चोरगदन मे बहुत जानवर हैं । अब तो आये दिन जंगल से जानवर ग़ायब होने लगे। जंगल के जानवर उनके हथियारों के आगे कब तक टिकते।

साथ साथ जंगल के पेड़ भी कटने लगे। पहाड़ नंगे हो गये। गदन सूख गया। बचे खुचे जानवर या तो भूख और प्यास से मर गये या जंगल छोड़कर ही चले गये। अगर कहीं बूढ़ा, भूख का मारा , जर्जर अवस्था मे कोई शेर दिखे तो समझ जाइये कि ओ चोरगदन का हारा हुआ जानवरों का राजा है।

आगे आदमियों की बारी है। भाग २ जरूर पढ़िये।







                     (4) कहानी चोरगदन की (भाग - १- जंगली संपत्ति का दोहन)
         
दो तीन सदी पहले की बात है। भारत के उत्तराखंड मे बनचूरी गाँव के पास चोरगदन नाम का बहुत घना जंगल था। इसका नाम चोरगदन क्यों पड़ा कहना मुस्किल है । बहरहाल अभी हम इसको यहीं छोड़ते हैं, बाद मे समय मिला तो पता करेंगे। यहाँ यह बताना काफ़ी होगा कि इससे चोरों का वास्ता रहा होगा। इस कहानी का मुख्य विषय यह नही है कि चोरगदन नाम क्यों पड़ा, बल्कि चोरगदन का क्या हुआ। इसलिये हम मुख्य विषय से न भटक कर आगे बढ़ते हैं।

जैसे मैंने कहा, चोरगदन एक बहुत बड़ा और घना जंगल था। जंगल मे अनेक प्रकार के पेड़ थे। इसके बीच से एक छोटी पहाडी नदी बहती थी जो जाकर हेंवल नदी मे मिलती थी। गाँव वाले इसको गदन कहते थे। शायद चोर और गदन को मिलाकर चोरगदन नाम पड़ा होगा। जंगल मे बहुत सारे जंगली जानवर रहते थे जैसे शेर, चीते, भालू, बाघ, हाथी, लोमड़ी, हिरण, आदि। इनके साथ ही सुअर, बंदर और बहुत सारे पशु पक्षी भी रहते थे। एक आध छोटी मोटी घटनाओं को छोड़कर जंगल मे सब मिलकर रहते थे।

जंगल के आस पास कई गाँव बसने लगे। उनमें से बनचूरी, रिखेडा, सार प्रमुख हैं। बसने वाले लोग सीधे सादे थे। वे भी कई कारणों से यहाँ आकर बसे थे, जरूर कोई बड़ा कारण रहा होगा। कोई यों ही अपना वतन नही छोड़ता। ग़रीब थे, खेती करके अपना और अपने परिवार का पोषण करते थे। कभी कभी जंगली जानवर उनकी फ़सल बरबाद कर देते तो कभी कभी ओ किसी हिरण को मारकर खाने का स्वाद बदल लेते। इसके अलावा बाकी सब ढीक चल रहा था।

समय कब एक सा रहा है। पिछली सदी की बात है। जंगल से जानवरों के ग़ायब होने की ख़बर आने लगी। लगभग हर जाति के जानवर उनके परिवार से किसी न किसी के ग़ायब होने की ख़बर सुनाते। सारे परेशान होकर जंगल के राजा शेर के पास गये और गुहार लगाई। राजा खुद परेशान था। उसके और उसके कुनबे से भी कुछ शेर और बच्चे ग़ायब थे। आपस मे काफ़ी तकरार हुई। यहाँ तक कि किसी ने राजा को ही बदलने की बात कह दी। शेर ने कहा वह पद छोड़ने को तैयार है पर संभालेगा कौन। हाथी की तरफ़ नज़र गई तो ओ भी चुप। चीता, भालू आदि भी चुप। एक बात पर सब सहमत थे कि यह काम मनुष्यों का ही है। बनचूरी, रिखेडा या सार वाले तो ऐसा नही करेंगे पर कह भी नही सकते।

पीछे कहीं से किसी ख़रगोश की आवाज़ आई। " मै किसी को मार तो नही सकता पर मै मालूम कर सकता हूँ कि किसका काम है। गाँव वाले मुझसे डरते भी नही। मै आसानी से उनमें घुलमिल सकता हूँ। मेरा सारा परिवार इधर उधर फैलकर मालूम करेगा कि यह काम किसका है फिर आप उनको सज़ा देना। " ख़रगोश की बात से सब सहमत हुये। बंदरों ने ऊँचे पेड़ों पर बैठकर निगरानी करने का  ज़िम्मा लिया। चीता को पूरे काम का ज़िम्मा सौंपा गया। कुछ ही दिनों मे पता चला कि बाहर से लोग आकर जानवरों को जाल मे फँसाते, उनका मुँह बंद करते और रस्सी से खींचकर  ले जाते। उनमें से कोई भी पास के गाँव का नही था। दो एक पकड़े भी गये पर बाकी भाग गये।ख़ैर समस्या हल हो गयी।

इधर गाँव मे ख़बर आई कि गदन मे दो आदमियों की लाश पाई गई। दोनों गाँव के लोग नही थे। बाहरी लगते थे। जिज्ञासा हुई कि कौन थे और किसने क्यों मारा। देखने से साफ़ लगता था कि जानवरों ने मारा था। ऐसा पहले कभी नही हुआ था। जानवरों ने फ़सलों और पालतू जानवरों को तो नुक़सान पहुँचाया था पर तीनों गाँव के किसी आदमी को नही मारा था।

बात की गहरायी मे जाने से पता लगा कि शहरों से कुछ लोग जानवरों को पकड़ कर ले जाते और अच्छे दामों पर बेचते। जानवरों की हड्डियों से दवा, चमड़े से चमकीले लिवास, थैले, बटुवे आदि बनाकर ख़ूब सारा मुनाफ़ा कमाते। कुछ को अजायब घरों मे बेच देते। काम थोड़ा जोखिम वाला था पर फ़ायदा बहुत था।

फिर क्या था ।  गांव के कुछ लोग चुपके चुपके यह काम करने लगे। शहर मे ख़बर गरम हो गई कि चोरगदन मे बहुत जानवर हैं । अब तो आये दिन जंगल से जानवर ग़ायब होने लगे। जंगल के जानवर उनके हथियारों के आगे कब तक टिकते।

साथ साथ जंगल के पेड़ भी कटने लगे। पहाड़ नंगे हो गये। गदन सूख गया। बचे खुचे जानवर या तो भूख और प्यास से मर गये या जंगल छोड़कर ही चले गये। अगर कहीं बूढ़ा, भूख का मारा , जर्जर अवस्था मे कोई शेर दिखे तो समझ जाइये कि ओ चोरगदन का हारा हुआ जानवरों का राजा है।

आगे आदमियों की बारी है। भाग २ जरूर पढ़िये।

















































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Universal Language of Love and Hate. Sometimes, I wonder, why humans developed languages or even need them? If we look back, we will realize...