Friday, August 4, 2017

ऊँचाई की मजबूरियां


बरसों पुरानी बात है । मुहल्ले में  एक दुष्ट नीयति का व्यक्ति रहता था । अपनी ताकत और गुर्गों की मदद से वह पहले मोहल्ले का फिर गाँव का और फिर देश का सर्वेसर्वा बन  गया ।  पर अब ओ कुछ उदास सा रहने लगा । जब उसने देखा कि देश के तीन चौथाई लोग दो जून की रोटी को मोहताज हैं और वह कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि उसके गुर्गे अब उसकी सुनते ही नहीं । उसने बहुत कोशिश की पर गुर्गे सुनते ही न थे। उसने चुप रहना ही ठीक समझा । नीचे गिरने  का डर और ऊँचाई की मजबूरियाँ। फिर जब वह मर  गया तो  उसके गुर्गे  भी आपस में लड़ते झगड़ते मर गए । यह तब की बात है जब राजा बादशाह हुआ करते थे ।

समय ने करवट ली और गरीब परिवार का एक युवक  अपनी मेहनत और लगन से आगे  आया । उसकी लगन, मेहनत, वादों और  ईमानदारी से प्रभावित होकर जनता ने  उसे देश का सर्वेशर्वा चुन लिया । । जनता को  उम्मीद थी कि वह  उनकी सारी मुश्किलें हल कर देगा । लोगों ने इन्तजार करते रहे, करते रहे पर ढाक के वही तीन पात। पर अब उसको तो सत्ता का सुख भोगने की आदत पड़ चुकी थी ।  सत्ता में  रहने  की खातिर रहनुमाओं ने किसी  के हाथ में  गाय की पूंछ दे दी, किसी को मंदिर के लिए ईंट, किसी को भाषा का पुलिंदा तो किसी को राष्ट्रगीत का सीडी और सब से कहा कि इन जरूरी कामों मे लग जांय। वही  नीचे गिरने का डर और ऊँचाई की मजबूरियाँ। सत्ता का  सुख  भोगते भोगते वह  भी अपना समय पूरा कर लेगा। यह प्रजातंत्र की बात है ।

कहानी नये मोड़ तलाश कर रही है ।

No comments:

Post a Comment

Universal Language of Love and Hate.

Universal Language of Love and Hate. Sometimes, I wonder, why humans developed languages or even need them? If we look back, we will realize...