उत्तराखंड, जितना देखा और समझा(पर्यटक की नजर से - समापन किस्त )
उत्तराखंड मे क्या नही है!!!! क्या कर सकते हैं? पिछले अंक से आगे।
पर्यटन जो एक बड़ा आय और रोज़गार का साधन हो सकता है उसके लिये क्या किया जा सकता है।अब इन बातों के कोई मायने नही कि अब तक क्या हुआ या क्या नही हुआ। हम उससे शिक्षा तो ले सकते हैं पर उसे पलट नही सकते। दो राज्यों का उदाहरण काफ़ी होगा।
केरला :
छोटा सा राज्य है। हरियाली यहाँ बिखरी पड़ी है। दूर दूर तक फैले चाय के बाग़ान सोने मे सुहागा का काम करते हैं। हरियाली हमारे पास भी कम नही है। उनके पास मुन्नार चाय के बाग़ान हैं तो हमारे पास कौसानी । फूलों की घाटी अलग से। उनके पास पुराने चर्च हैं तो हमारे पास तो चार धाम हैं। उनके पास समुद्र है तो हमारे पास बर्फ़ से ढके पहाड और उनसे कल कल बहती पवित्र गंगा और यमुना। उनके पास बोट क्रूजिंग है तो हमारे पास रिवर राफ़्टिंग। योगा, आयुर्वेद उनके पास भी तो हमारे पास भी। उनके पास पेरियार नेशनल पार्क है, हमारे पास राजाजी नेशनल पार्क । जिम कारबेट नेशनल पार्क अलग से।
उनकी तरह ही हमें भी कोई वाल्टर्स की तरह सलाहकार चाहिये जो हमारी प्राक्रतिक संपत्ति और पर्यटन का सही सही चित्रण कर सके। पर्यटन को बिना मार्केटिंग के बढ़ावा नही मिल सकता। मार्केटिंग सीजनल नही है जो साल मे एक बार कर ली और हो गया। यह लगातार समय माँगती है। जो दिखता है, ओ बिकता है। जब तक हम खुद अपना प्रचार नही करेंगे, लोगों को कैसे पता चलेगा।
GOD's OWN COUNTRY (भगवान का अपना देश) इन शब्दों का उपयोग बर्सों पहले एडवर्ड डू बोइस ने आयरलैंड के विकलौ पहाड़ियों के लिये किया था। फिर कई और देशों ने अपनी जगहों के लिये किया । कुछ साल पहले वाल्टर्स की सलाह पर केरला ने किया । आज केरला देश मे ही नही पूरी दुनिया मे एक पर्यटन का आकर्षण है। हज़ारों सैलानी वहाँ जाते हैं।
कश्मीर:
"अगर फिरदौस बर रू-ए- ज़ामिन अस्त, हमी अस्त, ओ हमी अस्त, ओ हमी अस्त, ओ हमी अस्त"
( अगर दुनियाँ मे कोई स्वर्ग है, यहीं है, तो यहीं है, तो यहीं है, तो यहीं है)
कश्मीर के बारे मे यह बात बर्सों पहले जहांगीर, मुग़ल साम्राज्य के चौथे बादशाह ने कही थी।
आज कश्मीर दुनिया के नक़्शे मे एक जाना माना टूरिज़्म का केंद्र है। बर्सों से बंद और पथ्थरबाजी झेलने के बाबजूद भी पर्यटन फलफूल रहा है। उत्तराखंड मे भी ओ सब कुछ है जो कश्मीर मे। वहाँ अमरनाथ, यहाँ चार धाम। वहाँ श्रीनगर, गुलमर्ग, पहलगांव तो यहाँ मशूरी, लैंसडौन, नैनीताल। जहांगीर को कोई जानता हो या न जानता हो, आदि शंकराचार्य को कौन नही जानता। केदारनाथ मे उनकी समाधि है।
केरल को अगर भगवान का अपना देश और कश्मीर को स्वर्ग कहते हैं तो उत्तराखंड को देव भूमि। वैसे हिमाचल को भी देव भूमि ही कहते हैं। पर उसको मंदिरों की वजह से कम और कुल्लू मनाली की वजह से ज्यादा जाना जाता है। क्या वजह हो सकती है कि वहाँ पर्यटक ज्यादा जाते हैं और हमारे यहाँ कम। कुछ तो बात है। मुझे पर्यटन के बारे मे इतना ही पता है कि अगर चाहें तो एक पत्थर को भी पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है। देश विदेश मे जहाँ भी किसी टूरिस्ट जगह पर गया, उसके पीछे कोई न कोई कहानी जरूर थी जो खींच कर ले गई। उसके पीछे एक बहुत बड़ा प्रचार भी था। इसलिये कोई आकर्षक नाम या वाक्य चुनना होगा। या तो जनता से सुझाव लेकर या प्रतियोगिता के ज़रिये कोई नाम ढूँढा जा सकता है। यह काम कोई जानी मानी एड एजेंसी कर सकती है।
प्रशून जोशी कैसे रहेंगे? ब्रेंड एम्बेसेडर के लिये धोनी ? शायद फ़्री मे कर दें या पिठाई और शाल से काम चल जाय।
इसमें कोई संदेह नही कि बद्री, केदार, गंगोत्री, यम्नोत्री की वजह से हर साल लाखों यात्री हमारे यहाँ आते है जिसके कारण अर्थ व्यवस्था को बल मिलता है। पर आज जो इंफ़्रास्ट्रक्चर - सडक, बिजली, पानी, रहने खाने की व्यवस्था है वह भले ही भक्त गण स्वीकार कर लें क्योंकि वे धार्मिक यात्रा पर निकले हैं और थोड़ा बहुत कष्ट को भी वे यात्रा का अंग मान लेंगे।पैसा ख़र्च कर सकने वाले सैलानियों को जो ज्ञान वर्धन के साथ साथ मनोरंजन के लिये भी निकले हैं, उनके रहने के लिये अच्छी जगह चाहिये, खाने के लिये पसंद दीदा भोजन जो सिर्फ़ मशूरी, नैनीताल जैसी जगहों पर ही उपलब्ध है। सरकार यह सब नही कर सकती, कर सकती तो अब तक कर चुकी होती। प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना होगा। जमीन सस्ती, टैक्स मे छूट, जैसे प्रलोभन देने होंगे। चैरिटी प्राइवेट सेक्टर की पूँजी नही होती।
फिर कहूँगा कि नया कुछ नही कह रहा हूँ, जो देखा वही सुझा रहा हूँ। आप मे से कई सरकार और प्रशासकों के नज़दीक हैं। जानते ओ भी हैं पर प्राथमिकतायें अलग हैं। मेरा विचार है कि एक दिन पर्यटन उत्तराखंड का आय का मुख्य साधन हो सकता है। केंद्र सरकार की मदद से बहुत कुछ हो सकता है। दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार है। चाहें तो मिलकर राज्य को पर्यटन का मुख्य आकर्षण बना सकते हैं।
हरि लखेडा,
नवंबर, २०१७
उत्तराखंड मे क्या नही है!!!! क्या कर सकते हैं? पिछले अंक से आगे।
पर्यटन जो एक बड़ा आय और रोज़गार का साधन हो सकता है उसके लिये क्या किया जा सकता है।अब इन बातों के कोई मायने नही कि अब तक क्या हुआ या क्या नही हुआ। हम उससे शिक्षा तो ले सकते हैं पर उसे पलट नही सकते। दो राज्यों का उदाहरण काफ़ी होगा।
केरला :
छोटा सा राज्य है। हरियाली यहाँ बिखरी पड़ी है। दूर दूर तक फैले चाय के बाग़ान सोने मे सुहागा का काम करते हैं। हरियाली हमारे पास भी कम नही है। उनके पास मुन्नार चाय के बाग़ान हैं तो हमारे पास कौसानी । फूलों की घाटी अलग से। उनके पास पुराने चर्च हैं तो हमारे पास तो चार धाम हैं। उनके पास समुद्र है तो हमारे पास बर्फ़ से ढके पहाड और उनसे कल कल बहती पवित्र गंगा और यमुना। उनके पास बोट क्रूजिंग है तो हमारे पास रिवर राफ़्टिंग। योगा, आयुर्वेद उनके पास भी तो हमारे पास भी। उनके पास पेरियार नेशनल पार्क है, हमारे पास राजाजी नेशनल पार्क । जिम कारबेट नेशनल पार्क अलग से।
उनकी तरह ही हमें भी कोई वाल्टर्स की तरह सलाहकार चाहिये जो हमारी प्राक्रतिक संपत्ति और पर्यटन का सही सही चित्रण कर सके। पर्यटन को बिना मार्केटिंग के बढ़ावा नही मिल सकता। मार्केटिंग सीजनल नही है जो साल मे एक बार कर ली और हो गया। यह लगातार समय माँगती है। जो दिखता है, ओ बिकता है। जब तक हम खुद अपना प्रचार नही करेंगे, लोगों को कैसे पता चलेगा।
GOD's OWN COUNTRY (भगवान का अपना देश) इन शब्दों का उपयोग बर्सों पहले एडवर्ड डू बोइस ने आयरलैंड के विकलौ पहाड़ियों के लिये किया था। फिर कई और देशों ने अपनी जगहों के लिये किया । कुछ साल पहले वाल्टर्स की सलाह पर केरला ने किया । आज केरला देश मे ही नही पूरी दुनिया मे एक पर्यटन का आकर्षण है। हज़ारों सैलानी वहाँ जाते हैं।
कश्मीर:
"अगर फिरदौस बर रू-ए- ज़ामिन अस्त, हमी अस्त, ओ हमी अस्त, ओ हमी अस्त, ओ हमी अस्त"
( अगर दुनियाँ मे कोई स्वर्ग है, यहीं है, तो यहीं है, तो यहीं है, तो यहीं है)
कश्मीर के बारे मे यह बात बर्सों पहले जहांगीर, मुग़ल साम्राज्य के चौथे बादशाह ने कही थी।
आज कश्मीर दुनिया के नक़्शे मे एक जाना माना टूरिज़्म का केंद्र है। बर्सों से बंद और पथ्थरबाजी झेलने के बाबजूद भी पर्यटन फलफूल रहा है। उत्तराखंड मे भी ओ सब कुछ है जो कश्मीर मे। वहाँ अमरनाथ, यहाँ चार धाम। वहाँ श्रीनगर, गुलमर्ग, पहलगांव तो यहाँ मशूरी, लैंसडौन, नैनीताल। जहांगीर को कोई जानता हो या न जानता हो, आदि शंकराचार्य को कौन नही जानता। केदारनाथ मे उनकी समाधि है।
केरल को अगर भगवान का अपना देश और कश्मीर को स्वर्ग कहते हैं तो उत्तराखंड को देव भूमि। वैसे हिमाचल को भी देव भूमि ही कहते हैं। पर उसको मंदिरों की वजह से कम और कुल्लू मनाली की वजह से ज्यादा जाना जाता है। क्या वजह हो सकती है कि वहाँ पर्यटक ज्यादा जाते हैं और हमारे यहाँ कम। कुछ तो बात है। मुझे पर्यटन के बारे मे इतना ही पता है कि अगर चाहें तो एक पत्थर को भी पर्यटन स्थल बनाया जा सकता है। देश विदेश मे जहाँ भी किसी टूरिस्ट जगह पर गया, उसके पीछे कोई न कोई कहानी जरूर थी जो खींच कर ले गई। उसके पीछे एक बहुत बड़ा प्रचार भी था। इसलिये कोई आकर्षक नाम या वाक्य चुनना होगा। या तो जनता से सुझाव लेकर या प्रतियोगिता के ज़रिये कोई नाम ढूँढा जा सकता है। यह काम कोई जानी मानी एड एजेंसी कर सकती है।
प्रशून जोशी कैसे रहेंगे? ब्रेंड एम्बेसेडर के लिये धोनी ? शायद फ़्री मे कर दें या पिठाई और शाल से काम चल जाय।
इसमें कोई संदेह नही कि बद्री, केदार, गंगोत्री, यम्नोत्री की वजह से हर साल लाखों यात्री हमारे यहाँ आते है जिसके कारण अर्थ व्यवस्था को बल मिलता है। पर आज जो इंफ़्रास्ट्रक्चर - सडक, बिजली, पानी, रहने खाने की व्यवस्था है वह भले ही भक्त गण स्वीकार कर लें क्योंकि वे धार्मिक यात्रा पर निकले हैं और थोड़ा बहुत कष्ट को भी वे यात्रा का अंग मान लेंगे।पैसा ख़र्च कर सकने वाले सैलानियों को जो ज्ञान वर्धन के साथ साथ मनोरंजन के लिये भी निकले हैं, उनके रहने के लिये अच्छी जगह चाहिये, खाने के लिये पसंद दीदा भोजन जो सिर्फ़ मशूरी, नैनीताल जैसी जगहों पर ही उपलब्ध है। सरकार यह सब नही कर सकती, कर सकती तो अब तक कर चुकी होती। प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना होगा। जमीन सस्ती, टैक्स मे छूट, जैसे प्रलोभन देने होंगे। चैरिटी प्राइवेट सेक्टर की पूँजी नही होती।
फिर कहूँगा कि नया कुछ नही कह रहा हूँ, जो देखा वही सुझा रहा हूँ। आप मे से कई सरकार और प्रशासकों के नज़दीक हैं। जानते ओ भी हैं पर प्राथमिकतायें अलग हैं। मेरा विचार है कि एक दिन पर्यटन उत्तराखंड का आय का मुख्य साधन हो सकता है। केंद्र सरकार की मदद से बहुत कुछ हो सकता है। दोनों जगह एक ही पार्टी की सरकार है। चाहें तो मिलकर राज्य को पर्यटन का मुख्य आकर्षण बना सकते हैं।
हरि लखेडा,
नवंबर, २०१७
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