Wednesday, January 10, 2018

ये बाबा चिठ्ठी भेजणाईं रै वाँ !

गोपाल, माँ बाप क चार बेट्यूंक पैथर एक ही बेटा छै। छै मतलब, कत्ती साल ह्वे गेन क्वी ख़बर सार नी च। भगवान से प्रार्थना च जख भी ह्वा राज़ी ख़ुशी ह्वा। ग्यारहवीं और बारहवीं क्लास मा दगडी पढवां। द्वी गढ़वाली । द्वी मिडिल क्लास परिवार। गोपाल अपर गढ़वाल बिटिन, मी लोवर गढ़वाल। बोली एक। स्कूलम त देशी फुदक छे पर घरम सब गढ़वाली ही बोल्द छे। वनी भी सरा किदवई नगर, सरोजिनी नगर नेताजी नगर, सेवा नगर गढवाल्यून भर्यूं छे। तब उत्तरांचल या उत्तराखंड नी बोल्द छे। बारहवीं क बाद मी त एथर चल ग्यूं पढणकुण और वू सरकारी नौकरी लग ग्ये, एल डी सी। दिल्ली माँ ही रंद छे सो मुलाक़ात हूणाई रैंदी छे। वेक पिताजी भी सरकारी नौकरी करद छे, क्वाटर मिल्यूं छे। रिटायर हूंण पर वु क्वाटर गोपालक नाम ह्वे ग्ये। सब बढ़िया चलणाई छे। व्या भी ह्वे और एक बिटिया भी आइ ग्ये। सरकारी पक्की नौकरी, सरकारी घर, सुंदर सुखी परिवार, बहुत सारे दोस्त। और क्या चायेणाई छे।

पर गोपाल ताई त विदेश जांणै कि धुन सवार छे। हर समय वही बात- यख क्वी भविश्य नी च। सब चोर छन साला। पिताक तरैं जिंदगी एक कमरा क घरम कटी जाली। ईं तनख़्वाह माँ क्या मी खौलु क्या बच्चों ताइ खलोल्। अमरीका कनाडा बिटीक ज़ू भी आंदू क्या ठाट छन वूंक। हज़ार द्वी हज़ार रुप्या त यनि फूँक दीदन। और हम साला एक एक कौड़ी गिणनाई रौंदां। सारी सामान लाला की दुकान बिटीक आंद उधार। भलु ह्वेन वेक जु द्वी टाइम ठीक से परिवार चलणाई च। महीनाक आख़िर जब तनखा मिलद त अध्धा त वखी चल जांद और बाकी मा सारी मैना भुगतान पडद।

कन्नी कैक जुगाड़ लगाइ और एक दिन मौन्टैरियल, कनाडा कुण रवाना भी ह्वे ग्ये। वैक क्वी चचेरा भाई रौंद छै वख। जांद वगद पार्टी सार्टी भी कर। हम सबून खूब मस्ती भी कर। जांणैक टाइम पर सब्यूंक आँख माँ आंशु भी छे। वेक पिता त जांद जांद भी कुछ न कुछ शिक्षा दींणाई रैन पर माँ बस रूणाइ रै और एक ही बात - ये बाबा चिठ्ठी भेजणाईं रै वाँ ! और गोपाल क भी एक ही जबाब- माँ चिंता न कर। द्वीयूं ताई सेवा लगाइक टैक्सी मा बैठी ग्ये। एयर पोर्ट तक सबी ग्यवां। पहुंचणैकी एक चिठ्ठी आई और फिर छै महिनामां दूसरी। वे टाइमपर फ़ोन त छै ना। आज कि तरह न त मोबाइल छे न ह्वाट्सअप न मेसेंजर। पैसा और रसूक वालों क घर पर ही फ़ोन छे। बौडी  चिठ्ठीक इंतज़ार करणै रैंद छे। गोपाल क जाण क बाद क्वाटर भी छुट गे।कुछ दिन किराय पर रैन फिर लड़की क घर म। गोपाल ख़र्चा पाणी कुण भेजणाई रै। कुछ पिता क पेन्सन से काम चल जाँ छे।

द्वी साल बाद आई और घरवाली और बेटी ताई भी ले ग्ये। मानन पडल कि मजामां छै। सेहत भी बढ़िया। हम पर भी दिल खोलिक ख़र्च कर। मज़ा ऐ ग्ये छे। हमन पुछ - अरे गोपाल तु क्या करदी कनाडा मा। गोपालन बताई कि टैक्सी चलांदु। खूब इनकम च। ज़्यादातर रात मा चलांदु। टिप ज्यादा मिलिद। सवारी जतना ज्यादा पियूँ रंद वतना ज्यादा टिप दींद। जतुक मी यख साल मा कमादु छै वख महिना मा कमै लींदु। मतलब कि आराम भले ही कम च पर कमाई खूब च। तब तक पता नी छै कि डालर मा कमाई च त ख़र्च भी डालर मा ही होलू। ख़ैर, पर सब देखीक त ठीक ही लगणाई छे।

जांद बगद पिता भी रुणाई छै और माँ त एक दम चुप। बस यनी ब्वाल- ये बाबा चिठ्ठी भेजणाईं रै वाँ ! और गोपाल- आप लोग चिंता ना करीन। मी आणाईं रौल न। गुड्डि दादी! दादी ! चिल्लाणाई रै पर दादी मुंड पर बस हाथ फेरना रै। बेटा ब्वारी न बूड बुढ़िया ताई सेवा लगाई और चल दीन। एयर पोर्ट तक छोडनोक बस मी ग्यूं। टैक्सी मा ततीक जगह छे। तब तक टिकट लेकर भीतर तक जै सक्यांदू छे। सामान वग़ैरा मा मदद ह्वे जांदी छे। अब त भीतर क्या अग़ल बग़ल मा भी नी झाँकण दींद।

फिर तीन साल तक गोपाल नी आइ। चिठ्ठी भी कम। ख़र्चा पाणी भी बंद। माँ बीमार ह्वे त गोपाल कुण चिठ्ठी भ्याज। एक दिन अचानक माँ चल बसी ग्ये। गोपाल तेरहवीं कुण आई अकेला। हफ़्ता भरकुण। ज्यादा बात नी ह्वे। पता चल कि बेटी स्कूलम च। एक बेटा भी ह्वे ग्ये। काम काज भी ठीक च । ख़र्चा बढ़ ग्ये त टैक्सी १८ घंटा तक चलाण पडद। ए टाइम पर एयरपोर्ट तक जाण नी ह्वे। मेरी भी नौकरी क बोझ छै और समय क भी अभाव। वैन भी क्वी देर नी द्याई।

अब गोपाल क पिता भी बुढे गे छे। बीमार ही रंद छै। जब ज्यादा हूंद छै तब भी बोल्द छै  कि गोपाल ताई नी बताण। ख़ामखां परेशान होलु। एक दिन बहुत तबियत ख़राब ह्वे त लड़कीन हास्पिटल मा भर्ती कर और गोपाल कुण तार कैरि दे। गोपाल हफ़्ता भर बादमां आई तब तक पिता ठीक ह्वेकन घर ऐ ग्ये छे। हफ़्ता भर रै कन वापस चल गे।
छै महिना बाद फिर तबियत ख़राब ह्वे, बचणैकि उम्मीद कम। गोपाल कुण तार कर। हफ़्ता भर बाद आई। बहुत दुखी ह्वेकन ब्वाल वैन- मी भगवान से प्रार्थना करदु कि एटाइम पर पिता जी क स्वर्ग वास ह्वे जाव त प्रसाद चढौलु। एक दिन त जाण ही च। अब बार बार आण नी हूंद। जहाज़ क किराया भी बहुत ह्वे गे। काम क भी नुक़सान।

द्वी दिन बाद सचमुच पिताजी चल बसींन। तेरहवीं करीक गोपाल चल ग्ये। गोपाल जरूरत पड़न पर आई जरूर च। बेटा हूंण क फ़र्ज़ निभाय। ऐ टाइम पर क्वी बोलन वालु नी छै- ये बाबा चिठ्ठी भेजणाईं रै वाँ ! कैन बोलन छे, कैकुण बोलन छे। फिर कभी मुलाक़ात भी नी ह्वे।

हरि लखेडा,
दिसंबर, २०१७.

NB- मेरी कच्ची पक्की गढ़वाली मे है। जिन बंधुओं को गढ़वाली न आती हो, किसी दूसरे से पढ़वा/अनुवाद करवा सकते हैं। कोई जी एस टी नही है।

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