नये वर्ष का संकल्प (New Year Resolution)
सप्ताह का आख़िरी दिन, महीने का आख़िरी दिन और साल का भी आख़री दिन। ऐसा संयोग कभी कभी आता है। पता नही पहले कब आया था और आगे कब आयेगा पर यह सही है हर साल की तरह यह साल भी चला गया।
हर साल की तरह नये संकल्प लिये जायेंगे और तोड़े जायेंगे। सोचा इस साल ऐसा कुछ संकल्प लिया जाय जिसका टूटना मुस्किल ही नही असंभव भी हो।
इससे पहले कि नये संकल्प के बारे मे बताऊँ यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले सालों मे जो संकल्प किये थे वो क्या थे और उनका क्या हुआ। सच्ची बात तो यह है कि नया साल क्या होता है इसके बारे मे बहुत देर से पता चला। अब भला जब यही नही पता तो संकल्प क्या ख़ाक लेते।बचपन मे बताया गया कि चैत्र के महीने से नया साल शुरू होता है। बाद मे पता चला कि जनवरी से शुरू होता है। कुछ लोग दीवाली से नये साल की शुरूवात करते हैं। स्कूल तक आते आते तय हो गया कि जनवरी से ही शुरू होता है। घर मे जो कैलेंडर लटका रहता था उसमें दिनांक और तिथि दोनों ही छपे हुये थे। मतलब अंग्रेज़ी और विक्रम संवत कैलेंडर का मिलाप। सारा काम काज अंग्रेज़ी मे और पूजा पाठ हिन्दी मे।
मरे तेरे संकल्पों का इतिहास
1. कैलेंडर कोई भी हो पर संकल्प भी लिया जाता है आगे जाकर पता चला जब अपनी बोली के साथ साथ हिंदी या अंग्रेज़ी मे भी बतियाने लगे। साल के शुरू मे तो नही पर परीक्षा के नज़दीक आते ही संकल्प लेने का बुखार चढ़ जाता। 'कल से सुबह चार बजे उठकर ठीक से पढ़ाई करेंगे' । घड़ी मे अलार्म भी भरा पर ढाक के वही तीन पात। या तो अलार्म सुना ही नही या उठ भी गये तो फिर लुढ़क गये। ले दे कर यही ठीक समझा कि जब तक आँखें नींद से बोझिल नही हो जातीं तब तक रटाई मारते रहो। जिन के उजाले मे तो चल जाता था पर अंधेरा होते ही आँखें नींद से दबने लगतीं और दिल को समझा लेते कि काफ़ी पढ़ लिया, बाकी सुबह जल्दी उठकर पूरा कर लेंगे। मतलब ये कि संकल्प न हमारे हुये न हम संकल्पों के।
2. फिर नौकरी करने लगे और खुद का कमाना खाना सीख गये। अब शौक़ पूरे करने का भी वक्त आ गया था। कालेज के दिनों मे एक सरदार दोस्त ने सिगरेट के कश लेने का स्वाद चखा दिया था। खुद तो सूटे नही मारता था पर कहता था कि सिगरेट के धुयें की ख़ुशबू उसे विभोर कर देती है। पूरा नाटक बाज़ था। पर क्योंकि जेब तंग रहती थी तो अपने पैसे से नही पी। सरदार ही लाकर देता था। एक बार मे एक ही लाता था। अब क्योंकि खुद कमाने लग गये थे तो कौन रोकता? ऊपर से ये ग़रूर कि सिगरेट पीते हुये रुतबे और रुआब मे इज़ाफ़ा होता है। चार मीनार और पनामा जैसी सस्ते ब्रेंड से लेकर विल्स फ़िल्टर किंग और कभी कभी इंपोर्टेड ब्रेंड भी चखे। भला चाहने वालों के कहने पर छोड़ने की क़समें भी खाईं पर सब बेकार। कई बार नये साल की शाम को संकल्प भी लिया पर क़समें और संकल्प तो तोड़ने के लिये ही होते हैं। फिर एक झटका लगा और डाक्टर ने कहा कि छोड़ दो वरना बत्ती गुल हो जायेगी । मरता क्या न करता, छोड़ दी। कुछ आदतें संकल्पों से नही, जान पर आने से छूटती हैं।
3. संकल्पों की लंबी लिस्ट है। सच बोलूँगा, रिश्वत नही दुंगा, ग़ुस्सा नही करुंगा, आदि आदि। सब टूटते रहे और मै दूसरों पर दोष मंढता रहा। कभी कभी झूट बोलना पड़ता है, काम निकालना है तो दुनिया के साथ चलना पड़ेगा, शांत रहकर लोग फायदा उठाते है आदि आदि कहकर दिल बहलाता रहा।
अब सोच रहा हूँ इस साल तो कोई धाँसू संकल्प करना है, जो कभी न टूटे। दोस्तों से सलाह ली। कुछ सुझाव भी आये। कुछ पहले ही कर रहा हूँ बिना संकल्प के जैसे अपनी शक्ति के मुताबिक़ दान करना। हर साल तो नही पर गाँव भी चला ही जाता हूं, जो धीरे धीरे कम हो रहा है और आने वाले समय मे और भी कम होगा। मार्निंग वाक, योगा, व्यायाम जो स्वस्थ रहने के लिये जरूरी हैं भी कर ही लेता हूँ। कुछ और आदतें हैं जो अब चरित्र मे शामिल हैं, तो छोड़ें तो छोड़ें कैसे। खाना पीना तो नही छोड़ सकते। प्यार-मोहब्बत, दूसरों की भरसक मदद, किसी को न दुखाना, कटु बचन न बोलना, हिल मिल कर रहना जैसी आदतें है जिन्हें छोड़ना उचित नही। सब आदतें छोड़ देंगे तो साथ मे क्या लेकर जायेंगे। माल -आसबाब, घोड़ा - गाड़ी, मकान-सकान, रुपया- पैसा जैसी चीज़ें ले जाने की परमिशन तो है नही!
काफ़ी सोच विचार कर तय किया है कि :
"मै संकल्प लेता हूँ कि अजर और अमर रहूँगा । (I Resolve that I will be Remain Evergreen and Immortal). "
इस संकल्प को मैं तोड़ना भी चाहूँ तो तोड़ नही पाउँगा। है न धाँसू संकल्प?
नये वर्ष की अनेक शुभकामनाओं के साथ,
आपका ,
हरि लखेडा,
३१/१२/२०१७
सप्ताह का आख़िरी दिन, महीने का आख़िरी दिन और साल का भी आख़री दिन। ऐसा संयोग कभी कभी आता है। पता नही पहले कब आया था और आगे कब आयेगा पर यह सही है हर साल की तरह यह साल भी चला गया।
हर साल की तरह नये संकल्प लिये जायेंगे और तोड़े जायेंगे। सोचा इस साल ऐसा कुछ संकल्प लिया जाय जिसका टूटना मुस्किल ही नही असंभव भी हो।
इससे पहले कि नये संकल्प के बारे मे बताऊँ यह जानना दिलचस्प होगा कि पिछले सालों मे जो संकल्प किये थे वो क्या थे और उनका क्या हुआ। सच्ची बात तो यह है कि नया साल क्या होता है इसके बारे मे बहुत देर से पता चला। अब भला जब यही नही पता तो संकल्प क्या ख़ाक लेते।बचपन मे बताया गया कि चैत्र के महीने से नया साल शुरू होता है। बाद मे पता चला कि जनवरी से शुरू होता है। कुछ लोग दीवाली से नये साल की शुरूवात करते हैं। स्कूल तक आते आते तय हो गया कि जनवरी से ही शुरू होता है। घर मे जो कैलेंडर लटका रहता था उसमें दिनांक और तिथि दोनों ही छपे हुये थे। मतलब अंग्रेज़ी और विक्रम संवत कैलेंडर का मिलाप। सारा काम काज अंग्रेज़ी मे और पूजा पाठ हिन्दी मे।
मरे तेरे संकल्पों का इतिहास
1. कैलेंडर कोई भी हो पर संकल्प भी लिया जाता है आगे जाकर पता चला जब अपनी बोली के साथ साथ हिंदी या अंग्रेज़ी मे भी बतियाने लगे। साल के शुरू मे तो नही पर परीक्षा के नज़दीक आते ही संकल्प लेने का बुखार चढ़ जाता। 'कल से सुबह चार बजे उठकर ठीक से पढ़ाई करेंगे' । घड़ी मे अलार्म भी भरा पर ढाक के वही तीन पात। या तो अलार्म सुना ही नही या उठ भी गये तो फिर लुढ़क गये। ले दे कर यही ठीक समझा कि जब तक आँखें नींद से बोझिल नही हो जातीं तब तक रटाई मारते रहो। जिन के उजाले मे तो चल जाता था पर अंधेरा होते ही आँखें नींद से दबने लगतीं और दिल को समझा लेते कि काफ़ी पढ़ लिया, बाकी सुबह जल्दी उठकर पूरा कर लेंगे। मतलब ये कि संकल्प न हमारे हुये न हम संकल्पों के।
2. फिर नौकरी करने लगे और खुद का कमाना खाना सीख गये। अब शौक़ पूरे करने का भी वक्त आ गया था। कालेज के दिनों मे एक सरदार दोस्त ने सिगरेट के कश लेने का स्वाद चखा दिया था। खुद तो सूटे नही मारता था पर कहता था कि सिगरेट के धुयें की ख़ुशबू उसे विभोर कर देती है। पूरा नाटक बाज़ था। पर क्योंकि जेब तंग रहती थी तो अपने पैसे से नही पी। सरदार ही लाकर देता था। एक बार मे एक ही लाता था। अब क्योंकि खुद कमाने लग गये थे तो कौन रोकता? ऊपर से ये ग़रूर कि सिगरेट पीते हुये रुतबे और रुआब मे इज़ाफ़ा होता है। चार मीनार और पनामा जैसी सस्ते ब्रेंड से लेकर विल्स फ़िल्टर किंग और कभी कभी इंपोर्टेड ब्रेंड भी चखे। भला चाहने वालों के कहने पर छोड़ने की क़समें भी खाईं पर सब बेकार। कई बार नये साल की शाम को संकल्प भी लिया पर क़समें और संकल्प तो तोड़ने के लिये ही होते हैं। फिर एक झटका लगा और डाक्टर ने कहा कि छोड़ दो वरना बत्ती गुल हो जायेगी । मरता क्या न करता, छोड़ दी। कुछ आदतें संकल्पों से नही, जान पर आने से छूटती हैं।
3. संकल्पों की लंबी लिस्ट है। सच बोलूँगा, रिश्वत नही दुंगा, ग़ुस्सा नही करुंगा, आदि आदि। सब टूटते रहे और मै दूसरों पर दोष मंढता रहा। कभी कभी झूट बोलना पड़ता है, काम निकालना है तो दुनिया के साथ चलना पड़ेगा, शांत रहकर लोग फायदा उठाते है आदि आदि कहकर दिल बहलाता रहा।
अब सोच रहा हूँ इस साल तो कोई धाँसू संकल्प करना है, जो कभी न टूटे। दोस्तों से सलाह ली। कुछ सुझाव भी आये। कुछ पहले ही कर रहा हूँ बिना संकल्प के जैसे अपनी शक्ति के मुताबिक़ दान करना। हर साल तो नही पर गाँव भी चला ही जाता हूं, जो धीरे धीरे कम हो रहा है और आने वाले समय मे और भी कम होगा। मार्निंग वाक, योगा, व्यायाम जो स्वस्थ रहने के लिये जरूरी हैं भी कर ही लेता हूँ। कुछ और आदतें हैं जो अब चरित्र मे शामिल हैं, तो छोड़ें तो छोड़ें कैसे। खाना पीना तो नही छोड़ सकते। प्यार-मोहब्बत, दूसरों की भरसक मदद, किसी को न दुखाना, कटु बचन न बोलना, हिल मिल कर रहना जैसी आदतें है जिन्हें छोड़ना उचित नही। सब आदतें छोड़ देंगे तो साथ मे क्या लेकर जायेंगे। माल -आसबाब, घोड़ा - गाड़ी, मकान-सकान, रुपया- पैसा जैसी चीज़ें ले जाने की परमिशन तो है नही!
काफ़ी सोच विचार कर तय किया है कि :
"मै संकल्प लेता हूँ कि अजर और अमर रहूँगा । (I Resolve that I will be Remain Evergreen and Immortal). "
इस संकल्प को मैं तोड़ना भी चाहूँ तो तोड़ नही पाउँगा। है न धाँसू संकल्प?
नये वर्ष की अनेक शुभकामनाओं के साथ,
आपका ,
हरि लखेडा,
३१/१२/२०१७
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