बिन्डी फुंद्यानाथ न बण
सारि गाँव मा रुकमा काकी ही रै गे जु मिताई चुप कराई सकद। बाकी सब चल बसींन। मतलब जु मिताई चुप कराई सकद छै। काकी कि बात ही अलग च। उमर ह्वे गे पर एकदम चुस्त। अपर टैम की पाँचवी पास। एक त पाँचवी पास,
ऊपर से काकी। रिस्तों की इज़्ज़त जरूरी च। डाटणौ क पूर अधिकार च काकी क और चुप रौणोक म्यार।
काकी जब शुरू हूंद त रुकणौक नाम नी लींद। मी भी कम नि छौं
, सब रिकार्ड करदै। स्मार्ट फ़ोन क यतुक फायदा त छैंच। फ़ैसला आपक हाथ मा।
मी-
काकी नमस्कार। खूब छे।
काकी-
मी त खूब छौं पर तु ठीक नी छे मेजाण। द्वी चार सालम एक द्वी दिनौकुण घर आंदि और फुंद्यानाथ बणी जाँदि। ई बि गलत,
वी बि गलत। यन करो,
तन करो। अरे तिताई क्या पड़ीं च। आदी,
खादी और जादी। जब कुछ पता ही नी च त किलाई खामोखां पटवारी बणदी। मी सब सुणणाई छे,
त्यार भाषण।
मी-
काकी क्या गलत ब्वाल? यन त ब्वाल कि सब पुंगड नी कै सकद त सग्वाड त करी ल्याव। घर कि नज़दीक बाँझ पुंगड ख़राब दिख्याणाई छन।
काकी-
तिताई चायेणाई च बैठक और वूं ताई तेरी सिगरेट। सग्वाड त करी ल्याव!
तिताई क्या पता?
ताज़ी ताज़ी भुज्जी कै ताई ख़राब लगद?
हैं? बांदर ह्वे गेन। कुछ नी राखद। जड़ से उखाडीक ख़ै जांदन। ब्याली भरसा क सग्वाड सफ़ाचट करि गेन। वैन बचाणैकी कोशिश कर त वैकि कपड़ा लत्ता फाडीक चंप्पत ह्वे गेन। जै कन देख,
खटला मा पड्यूं च। यन लगणाई जन कैन लाठ्यूंन मारी ह्वालू।
काकी क्या बुनै छे, बांदर छन कि रिख?
-मीन अपर ग्यान बखार।
काकी-
रिख से भी ख़तरनाक। आठ दस दगड मा आंदन। यतूक त गाँव मा आदिम नि रै!
नरेशै की ब्वारी कुटद्वार जाईं च। अफ़ीक खाणुक बणाणैई च। रोटी बणैक धैरि गे और सग्वाड चारण बैठ बि नि छै कि बांदर ऐन और रोटीक टोकरि लेकन भागी गेन। मिज़ाण दरवाज़ खुल्यूं रै गे। क्या कन छे,
भुकि से गे। तुम लोग ताई कुछ पता नी। गाँव की जिंदगी पैली भी मुश्किल छे अब त क्या बोन। कुछ दिन यख रैंकन द्याखो तब पता चललो।
मी-
काकी! बांदर, रिख, सुंगर, बाघ त पैली भी छै। कत्ती बेर बाघ बाखर खींचीक ली गे छे। कत्ती बेर कुत्ताओं न भगाई। पर तब लोग डरद नी छै। दूर दूर तक पुंगड आबाद छै। साल मा चार मैना पुंगड्यूं मा कटि जाँदि छे। रात गोट और दिन जानवरूक चराण। साल भर कुण अनाज यूँ पुंगड्यूं बिटीक आंद छे। अब क्या ह्वे । खेती बाँझ रैली त जानवरूक मज़ा च।
काकी-
बात त ठीक च। पर तु बता तब त्यार परिवार मा खाण वाल कति छै और अब कति छन। क्या सब्यूंक गुज़ार ह्वे सकद। नि ह्वे सकद न?
जब परिवार मा खाण वाल बढ़ी जांदन त कुछ ताई कुछ और काम करण पडद। अब गाँव मा क्या काम च। कुछ बि ना। भैर जाण पडद। वख जैकन ज़ू बि काम मील करण पडद।
मी-
सी त ठीक काकी पर पैली साल मा चार छै महिना कुण जांद छे। खेती क टाइम पर घर ऐ जांद छे।चार छै महिना की कमाई से मदद ह्वे जाँदि छे। बाल बच्चा पल जाँदि छे।
काकी-
तु नि छे समझणाई। परिवार त बढि गेन,
खेत त नी बढ़ी सकद। पेट त जानवर भी भरि लींदन। फिर यन बि च कि भैर जैकन वकैकी चका चौंध देखीक चकराई गेन और फिर वखैकी ह्वे गीन। जब घर आंदन त ठाटबाट से। देखा देखी सब तनी करण लगि जांदन। तु आपताई देख ले। पढ़ी लेखीक तीन क्या कर गाँव कुण। अरे साहब ह्वेल त आपकुण। शुक्र मना भाई छैं च घरम। तुम लोगुक बस बात ही बात च,
करीक दिखाव त मी भी मानुलु।
मी-
काकी मेरी बात छोड़। ऊँकी बात कर जु भैर जैकन छोटी मोटी नौकरी कैकन गुज़ार करणाई छन । उ त गाँव मा अपर खेत करी सकदन। और ना त कम से कम बीच बीच मा ऐकन अपर पूर्वजों क घर त सँभाली सकदन।
काकी-
जब कैन रौण ही नी त घर संभालिक क्या फैदा?
तु क्या छे समझणाई
? घर संभालाण मज़ाक़ नी। पट्वाल खिसिकी गेन,
कूड चूणाई छन। कै ताई नी आंदु ठीक करण। न त पट्वाल रै न पट्वाल लगाण वाल। लिंटर डालण कुण भी बिहारी या नजंबाद बिटीक मुसलमान आंदन। तीन चार घर मा लिंटर तीन भी देखी ह्वाल,
सब पर ताल लग्यां छन। जब क्वी आल त पैली त झाड़ झपौड करौलु,
गंध दूर करणौकु खांतुडु
- चद्दर ताई धाम दखाल तब जैकन रात सीणैकी सौचुलू। कैम च यतुक टैम?
एक बात और। सब नकारा ह्वे गीन। काम क्वी नी कन चांदु। क्या बोल्दन
- मनरेगा, बेपेल, पेंसन। जब मिले यूँ त धन्नी काम करे क्यूं?
जोंक बाप दादा ज़मींदार छे अब भिखारी ह्वे गेन। सरकार जैकी भी ह्वा पर भिखारी त हम छवां।
मी-
काकी! पर गाँव मा बारवीं तक सरकारी स्कूल च,
हस्पताल च,
प्रधान च,
सरपंच च । फिर भी गाँव ख़ाली किलाई हूणाई च।
काकी-
अब जादा नि बुलवा। स्कूल च पर मास्टर नीन। हस्पताल च पर डाक्टर नी,
प्रधान और सरपंच बिक्यां छन। चुनावक टैम पर जु जादा दाम लगालु वैक ह्वे जांदन। किलाई। तु क्या छे समझणाई?
त्यार बाबा अपर बच्चौं ताई पढ़ाई सकद त और नी पढ़ाई सकद। अपर त जन कटी,
तन कटी। बच्चौं भविष्य त सुधारो। बस यनी सोचीक क्वी वापस नी आणाईं।
मीन त अपर मँगला कुण यनी ब्वाल। यख कुछ नी धर्यूं। बच्चा पढ़ि लिख जाल त कुछ बणी जाल। यख ना स्कूल
, ना रोज़गार।
उपर से ते जनी लोग ऐ जांदन। पानी कि बोतल और सब्ज़ी बि दगड मा लांदन। बढिया जुत्त,
कपड़ा। विदेशी शराब। लंबी लंबी सिगरेट। द्वी चार दिन रै,
गाँव की आव हवा की तारीफ़ करी,
बेफिजूल सलाह दे और फिर नदारद। लौटीक आल कि ना,
वै क बी पता नी।
तु बुर नी मानी। मेरी आदत त यनी च। जु मन मा आई बोलि दींदु। मेरी बात मान,
काकी छौं तेरी। छुट्टी काट और जा। फुंद्यानाथ ना बण। त्यार जाकण बाद,
सब मज़ाक़ करदन। मिताई अच्छा नी लगदु। त्यार विचार ठीक छन। गाँव बाँझ ह्वे गे। कूड टुट्यां पड्यां छन। कै ताई अच्छु लगदु। पर करण क्या च। जैकी जन चलणाई च,
ठीक च। सब कुशल चायाणाई छन।
ये ले। यतना देर बिटीक बक बक करणै छौं चाय तक नी पूछ।
काकीन चाय बणाई। चुप्पी साधीक मीन चाय प्यै। अब तक खोपड़ी घुर्याणाई
च। काकी कि बात मा कतना सच्चाई च,
विचार क विषय च।
आप मा कुछ जौं ताई पता च कि मी अमरीका मा रौंदु सोचणाई ह्वेली कि मिताई क्या पडीं। पर मीन त जौं पुंगड्यूं मा पगार लगाइन वु जब जंगल बण गीन त दुख हूंद। वन देखे जाव त हमेशा कुछ नी रै। जब बड़ बड़ क़िला नि रै त हमार गाँव क खपरैल की क्या?
हरि लखेडा,
जून २०१८