सत्ता के गलियारे से
पांच साल यूँ ही खिशक जायेंगे, मुझे मालूम है,
वादे जो किये, निभाने भी होते हैं, मुझे मालूम है,
मित्रों आप तो बस यूँ ही परेशान हो, नाराज हो,
हम फिर लौट कर जरूर आयेंगे, मुझे मालूम है।
लोगों का क्या? कहतें हैं, सुनते हैं, भूल जाते हैं,
समय का क्या आता है, जाता है, फिर आ जाता है,
गले में हरी घास बंधी हो, ठीक से हाँकने वाला हो,
तो ऊंट भी तपते रेगिस्तान में दौड़ता चला जाता है ।
लंबी लड़ाई में सत्ता को हथियाने में समय लगता है,
मिलने जाय तो सत्ता का सुख भोगने में समय लगता है,
वादों की याद दिलाना सहज है लेकिन मेरे मित्रों,
हर किसी वादे को निभाने में भी तो समय लगता है ।
फिर जल्दी किस बात की, सब होता है, हो जायेगा,
हमसे पहले भी तो यही हुआ, होगा, हो जायेगा,
यह इल्जाम लेकर कि हम उनसे अलग साबित ना हुए,
आप ही बताइए कहाँ, क्यों और कैसे जिया जायेगा।
हरि लखेड़ा
सितम्बर 2017
पांच साल यूँ ही खिशक जायेंगे, मुझे मालूम है,
वादे जो किये, निभाने भी होते हैं, मुझे मालूम है,
मित्रों आप तो बस यूँ ही परेशान हो, नाराज हो,
हम फिर लौट कर जरूर आयेंगे, मुझे मालूम है।
लोगों का क्या? कहतें हैं, सुनते हैं, भूल जाते हैं,
समय का क्या आता है, जाता है, फिर आ जाता है,
गले में हरी घास बंधी हो, ठीक से हाँकने वाला हो,
तो ऊंट भी तपते रेगिस्तान में दौड़ता चला जाता है ।
लंबी लड़ाई में सत्ता को हथियाने में समय लगता है,
मिलने जाय तो सत्ता का सुख भोगने में समय लगता है,
वादों की याद दिलाना सहज है लेकिन मेरे मित्रों,
हर किसी वादे को निभाने में भी तो समय लगता है ।
फिर जल्दी किस बात की, सब होता है, हो जायेगा,
हमसे पहले भी तो यही हुआ, होगा, हो जायेगा,
यह इल्जाम लेकर कि हम उनसे अलग साबित ना हुए,
आप ही बताइए कहाँ, क्यों और कैसे जिया जायेगा।
हरि लखेड़ा
सितम्बर 2017
No comments:
Post a Comment