जन राखल तन्नी
ठीक
गंगा बौ, नै नवेली दुल्हन जब गांव मा ऐ त सबून ब्वाल, परी च परी। बरात देर रात मा लौटि
छे, जनानूक अलावा कैतै भितर नि आणि
दे। वन त बराती हम बि छे पर वेदी मा बौ क एक हाथ लंबू घूंघट खैन्च्यू रै। पीतांबर
भैजीन बि अन्दाज़ लगैक माँग भर।
अगली दिन बि
गांव क पाणीम जब बौडि और जिठाण क दगड़ गे त घूंघट जरा कम करण पड़ पर मुखडा साफ साफ
नी दिखे।
द्वी दिन बाद
पीतांबर भैजि न बतै कि भौत बिगरेलि च। स्वभाव बि मिठ्ठू। पीतांबर भैजीन त बोलणु ही
छे ।
फिर द्वार बाट
ह्वे कन आई। बस गंगा बौ गांव की ह्वे गे। सचमुच बहुत खबसूरत और मयालि। क्वी नि
बोलि सकुद छे कि दुसर गांव बिटीक आईं च।
पीतांबर भैजि
गांव क प्राइमरी स्कूल पास छे । चान्द त कोशिश करिक दिल्ली देहरादून चपरासी वपरासी
लग सकद छे पर बाप दादा की जैजाद नी छोड़ि सक। मेहनत और लगन से खेती कर, बाखर ढेबर पालिन और खूब कमै कर।
द्वी बेटा एक
बेटी । बेटी न गांव क स्कूल से 8 पास कर । अब तक
गांव मा मिडिल खुल गे छे। व्याह ह्वे गे। ज्यादा पढैक क्या कन। बेटौन बि 8 पास कर और गांव क काका की निगरानी
मा दिल्ली बिटीक ग्रेजुएट ह्वे गीन । बड़ सरकारी नौकरी मा लगि गे । छोटुभाई एक
प्राइवेट कंपनी मा। बड़ु दिल्ली, छोटुभाई
गाजियाबाद । अपर अपर हिसाब से द्वी खुश।
समय आण पण द्वी
बिवाये गीन । ब्याह मा मी बि सहित परिवार शामिल छे । बड़ैकि घरवाली भी सरकारी नौकरी
मा। और क्या चायेणै छे । छोटुभाई की घरवाली बस घरवाली । पीतांबर भैजि और गंगा बौ
खुस। दिल्ली आणै जाणै रैन। मुलाकात हूणै रै।
समय की रफ्तार
निराली । पीतांबर भैजि साठ साल बि नि टप। गंगा बौ एकदम टुटि गे। पांच सालम हि
बुढ़े गे। छे साठैकि,
लगदि अस्सी की। बेटा दिल्ली लि
ऐन। आपस मा तय कर-छै मैना बड़क दगड़, छै मैना छोटक
दगड़। बौ तै कैन नी पूछ कि ऊ क्या चान्द । कमी कखि बि ना। यी उमर मा जरूरत वनि बि
क्या हूँदन। बस द्वी टैम कि रोटि ।
हर छै मैनाम घर
बदलि। चल दिल्ली जाणक टैम ह्वे ग्ये, अब चल
गाजियाबाद ।
एक शादी मा
मुलाकात ह्वे । कुछ कमजोर सी।
-बौ खूब छे? मीन पूछ।
-हाँ सब ठीक।
फिर यना वना की
बात। गाँव की पुराण कहानी क़िस्सा।
-क्या बात च लड़का ब्वारी नी छन
दिखेणै? मीन पूछ।
-ह्वाल यखि कखि।
-खाणैकि लैन लगीं च। तुम कुण लैओं
प्लेट माँ?
-जौन लाण छे उ त दोस्तों मा रमी
ह्वाल।
-क्वी बात नी मी लै औलु।
-ना, भूख नी च। तु
ख़ैलि।
-ठीक च। मी देखदु छौं ऊं तै।
-तु चिंता न कर, ऐ जाल। खाणै पीणै ह्वाल। म्यार
क्या, जन राखल तन्नी ठीक।
क्या बोनु छे? बड़ी मुश्किल से बड़ बेटा दिखे।
टैंट क पैथर दोस्तुक दगड रम्यूं छे।
-बेटा तेरि माँ भुखि बैठीं च। जरा
देखि ले। लाइन मा लगीक खाणुक खैकन घर ऐ ग्यूं।